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आज़ादी दिवस: भारतीय नहीं चाहते थे 15 अगस्त की रात आज़ादी! फिर क्यों हुई घोषित? जानें अनसुना किस्सा

 

देश कल आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ (75th Independence day) मनाने जा रहा है. 15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास में सबसे स्वर्णिम और यादगार दिन है. इस दिन भारत 200 साल की अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद हुआ था. वहीं हमारी स्वतंत्रता के साथ कई ऐसे अनसुने व अनकहे किस्से जुड़ें हैं. उनमें से कुछ बहुत ही रोचक हैं. आईये नज़र डालें उन्हीं रोचक और रोमांचक किस्सों पर.

भारतीयों की पसंद क्यों नहीं थी 15 अगस्त की तारीख?

  • जनवरी 1930 के आखिरी रविवार (26 तारीख) को आजादी का दिन घोषित करने के प्रस्ताव को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पारित किया गया था. यही वह शहर था, जहां पंडित नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया था. अपनी बायोग्राफी में भी नेहरू लिखते हैं कि कैसे 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का प्रण लिया गया था. 1930 के बाद हर साल कांग्रेस से जुड़े लोग 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस मनाते थे.
  • बहरहाल, अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ने का फैसला किया तब उन्होंने इसके लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख चुनी. यह तारीख लॉर्ड माउंटबेटन ने चुनी थी. यह सेकंड वर्ल्ड वॉर में मित्र देशों की सेना के आगे जापान के घुटने टेक देने का दिन था. भारतीय तो 26 जनवरी 1948 के दिन आजादी चाहते थे लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त से ज्यादा कम नहीं करना चाहते थे.
  • बतादें भारतीय ज्योतिषियों ने एलान कर दिया था कि 15 अगस्त अशुभ दिन है. लिहाजा, यह फैसला किया गया कि जश्न 14 अगस्त आधी रात से शुरू किया जाए. संविधान सभा का स्पेशल सेशन बुलाया गया.
  • 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि, आजादी मिलने के लगभग 20 मिनट बाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु और पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद लार्ड माउंटबेटन के पास गए उन्हें देश का पहला गवर्नर जनरल बनने का न्योता दिया. साथ ही पंडित नेहरू ने लार्ड माउंटबेटन को एक लिफाफे में पहली कैबिनेट मंत्रियों की सूची सौंपी. जब वो लिफाफा खोला गया तो वो खाली था. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह तक गुम हुई सूची ढूंढ ली गई थी.
  • सदन की कार्यवाही रात 11 बजे वंदे मातरम् के साथ शुरू हुई. आजादी की लड़ाई में अपनी जान देने वालों के सम्मान में दो मिनट का मौन रखा गया. महिलाओं के एक समूह ने नेशनल फ्लैग पेश किया.
  • 15 अगस्त 1947 की सुबह 8.30 बजे वाइसरीगल लॉज, जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहा जाता है, वहां आजाद भारत की पहली सरकार का शपथ ग्रहण समारोह शुरु हुआ. भारत के पहले प्रधानमंत्री ने 10.30 बजे काउंसिल हाउस के ऊपर तिरंगा फहराया.

वहीं, जब भारत 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि में पूरी देश आजादी का जश्न मना रहा था उस वक्त आजादी के आंदोलन के सबसे बड़े प्रतिनिधि महात्मा गांधी वहां मौजूद नहीं थे. महात्मा गांधी बंटवारे के फैसले से नाखुश थे और बंटवारे की वजह से हो रहे साम्प्रदायिक दंगों और तनाव को रोकने के लिए वो कलकत्ता में अनशन कर रहे थे.

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