भारत में आए दिन होने वाले रोड ऐक्सिडेंट में कुछ हद तक दुपहिया और चारपहिया वाहन के टायरस का भी ताल्लुकात होता हैं। ख़राब रोड के कारण तो लोग अपनी जान गवाते ही हैं, लेकिन कभी-कभी गाड़ी के टायर की ख़राब क्वालिटी की वजह से भी कुछ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता हैं। इसलिए टायर की क्वालिटी का अच्छा होना बेहद ज़रूरी हो जाता हैं।
भारत में टायर बनाने वाली पांच कंपनियों ने महंगी दरों पर टायर बेचने के लिए आपसी साठगांठ किया था। इस अपराध में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने उन पाँच कंपनियों पर बीते बुधवार को 1788 करोड़ रुपये का भारी-भरकम जुर्माना लगाया हैं। देश में 90 प्रतिशत गाड़ियों के टायर इन्ही पांच कंपनियां के ब्रांड के लगे होते हैं। उनके बनाए संगठन को भी दोषी मानते हुए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने 8.4 लाख का जुर्माना भरने का आदेश दिया हैं।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अनुसार, टायर कंपनियों के इस कार्टेल ने टायरों की कीमतें “महंगी” रखने के लिए उत्पादन सीमित और नियंत्रित रखा हैं। बाजार में आपूर्ति को भी नियंत्रित किया गया हैं, इन कंपनियों और इनकी बनाई ऑटोमेटिव टायर मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन (एटीएमए) ने प्रतिस्पर्धा को ख़त्म करने के लिए आपस में समझौता कर लिया था।

यह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अधिनियम की धारा 3 का उल्लंघन हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के मुताबिक, कंपनियों ने टायरों की कीमतों, उत्पादन बिक्री का संवेदनशील डाटा एटीएमए के प्लेटफॉर्म पर एक-दूसरे से साझा किया हैं। इसके आधार पर टायरों की कीमतों पर साझा साँठगाँठ कर निर्णय लिए।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने साल 2018 में कंपनियों को दोषी माना था। लेकिन फिर इन कंपनियों ने चेन्नई के हाईकोर्ट की शरण ली और 6 जनवरी को अपील खारिज कर दी गई थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा लेकिन वहा से भी 28 जनवरी को इनकी अपील खारिज हो गई थी।
एटीएमए कंपनियों से उनके सेग्मेंट के अनुसार डाटा जुटाती, जिसमें टायर उत्पादन, घरेलू बिक्री, निर्यात जैसे आंकड़े होते। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने उसे सदस्य कंपनियों या किसी अन्य जगह से डाटा जमा करना बंद करने का निर्देश दे दिया था।
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