किस तरह पता लगाया जाता है कि मानसून कैसा होगा?

 
किस तरह पता लगाया जाता है कि मानसून कैसा होगा?

आप लोग भी सोच रहे होंगे कि इस बार मानसून कैसा रहेगा. बारिश अधिक होगी या सूखा रहेगा. इधर उत्तर भारत में भीषण गर्मी होना प्रारंभ हो चुका है. वहीं साथ साथ बारिश भी हो जाती है. जिससे मौसम में थोड़ा सुधार हो जाता है. इधर बंगाल में प्री-मानसून बारिश शुरू हो चुकी है. क्या आप लोग जानते है कि इस बात का अंदाजा कैसे लगाया जाता है कि इस वर्ष बारिश अधिक होगी या सूखा रहेगा.

'नीना' और मानसून का सम्बंध

वैज्ञानिक मानसून का पता लगाने के लिए भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पश्चिमी बेसिन में समुद्री हवाओं के तापमान के पैटर्न पर ध्यान रखते हैं. यहीं स्थित मानसून को अपने अनुसार प्रभावित करती हैं. इसमें दो तरह की स्थितियां उत्पन्न होती हैं. 'एल नीनो' एवं 'ला नीना'. El Nino Southern Oscillation इन्हें ही कहा जाता है.

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इस कारण होती है ज्यादा बारिश

'ला नीना' को भारत में अच्छी बारिश के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जब हवा का दबाव पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह पर होने लगता है तब इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होती है. ऐसा होने से समुद्र की सतह के तापमान कम हो जाता है. फिर इस पर चक्रवात का असर देखने को मिलता है. इसी कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपनी दिशा बदलते है. जब प्रकार 'ला नीना' की स्थिति बनती तो भारत में मानसून अच्छा होता है.

इस कारण होती है कम बारिश

'एन नीनो' की स्थिति तब बनती है जब प्रशांत महासागर की सतह अधिक गर्म हो जाती है. ऐसा होने से हवाओं की दिशा में परिवर्तन होता है और मौसम विपरीत हो जाता है. ऐसा होने से भारत के किसी हिस्से में बाढ़ आती है तो कहीं कहीं सूखा ही रहता है. 'एन नीनो' की स्थिति के कारण ही भारत में सूखा पड़ता है. अपवाद के तौर पर वर्ष 1997 में एन नीनो की स्थिति के बाद भी अच्छी बारिश हुई थी.

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