'उम्मुल खेर': झुग्गी बस्‍ती से निकलकर तय किया IAS तक का संघर्ष भरा सफर

 
'उम्मुल खेर': झुग्गी बस्‍ती से निकलकर तय किया IAS तक का संघर्ष भरा सफर

कहते हैं कि अगर इंसान के अंदर दृढ़ निश्चय हो और कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो सफलता उसके कदम चूमती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल खेर ने. एक ऐसी लड़की जो विकलांग पैदा हुई और इस विकलांगता को ही अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली गई. मन लगाकर पढ़ाई की और अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा को पास कर दिखाया.

स्लम बना पहला आशियाना

नौकरी न होने की वजह से पिता गुजर-बसर करने के लिए दिल्ली आ गए. उम्मुल भी दिल्ली के निजामुद्दीन में एक झुग्गी में अपने परिवार के साथ रहती थीं. यही उनका पहला आशियाना था. वहीं फुटपाथ पर उनके पिताजी कुछ सामान बेचा करते थे, जिससे उनके घर का खर्च चलता था. पहले ही गरीबी थी, जिस पर एक दिन उनकी झुग्गियों को वहां से हटा दिया गया. मजबूरी में उन्हें त्रिलोकपुरी में किराये का कमरा लेना पड़ा.

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पिताजी का काम निजामुद्दीन में था, जो यहां आने से चला गया. उस समय उम्मुल सातवीं कक्षा में पढ़ती थी. उसी समय उन्होंने फैसला किया कि वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ायेंगी. ऐसे उनके घर का खर्च और पढ़ाई का खर्च निकलने लगा. उम्मुल ने आगे भी कई वर्षों तक ट्यूशन पढ़ाकर ही अपनी पढ़ाई का पैसा इकट्ठा किया.

पैरों में 16 फ्रैक्चर, 8 बार हुआ ऑपरेशन

उम्मुल खेर के जीवन में संघर्ष सिर्फ इतना ही नहीं था कि परिवार बेइंतहा गरीबी में जी रहा है बल्कि उम्मुल जन्मजात एक बोन फ्रजाइल डिसीज़ से भी ग्रसित थी. इस बीमारी की वजह से उम्मुल के शरीर की हड्डियों के अत्यधिक नाजुक थी. इनकी हड्डियों में 16 बार फैक्चर हुए. 8 बार ऑपरेशन करवाना पड़ा.

उम्मुल की शिक्षा

उम्मुल ने स्कूली शिक्षा दिव्यांग बच्चों के स्कूल से पूरी की. यहां मुफ्त में पढ़ाई होती थी. इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिये स्कॉलरशिप्स हासिल कीं. उम्मुल के दसवीं में 91 प्रतिशत और बारहवीं में 90 प्रतिशत अंक थे. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया.

बात मास्टर डिग्री की आयी तो उन्होंने जेएनयू से पीजी डिग्री ली यानी एमए किया और यहीं से एमफिल का फॉर्म भी डाल दिया. 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हुआ. 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हुये थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं. एमफिल के बाद उम्मुल ने जेआरएफ क्लियर किया और यहां से उनके पैसे की समस्या को लगाम लग गई.

पहले ही प्रयास में पास की यूपीएससी परीक्षा

जेआरएफ करने के साथ ही उम्मुल यूपीएससी की तैयारियों में जुट गई थी. पहले ही प्रयास में 420वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण भी की. फिर इन्हें भारतीय राजस्व सेवा में जाने का मौका मिला. फिलहाल असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में कार्यरत है.

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