DC vs DM: कई बार लोग डीएम और कलेक्टर के पद को लेकर कनफ्यूज हो जाते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि क्या दोनों अलग-अलग पद है या एक ही हैं. साथ ही लोगों को इनकी जिम्मेदारियों के बारे में भी पता नहीं होता है. हालांकि, लोक संघ सेवा आयोग (UPSC) में सिविल सेवा परीक्षा (CSE) की तैयारी करने वाले छात्रों को लेकर कहा जाता है वो डीएम या कलेक्टर बनने की तैयारी करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि आपको इस बारे में सही जानकारी हो. आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि DC और DM मे क्या फर्क होता है.
DC vs DM (होता है ये फर्क)
डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर (DC):
किसी भी ज़िले में राजस्व प्रबंधन से जुड़ा सबसे बड़ा अधिकारी डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ही होता है. राजस्व के मामलों में डिविजनल कमीश्नर और फाइनेंशियल कमीश्नर के जरिए सरकार के प्रति सभी जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर की ही होती है. डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर किसी भी ज़िले का उच्चतम न्यायिक अधिकारी होता है. आगे जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर की प्रमुख जिम्मेदारियां क्या होती हैं.
रेवेन्यू कोर्ट
एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन, सिंचाई बकाया, इनकम टैक्स बकाया व एरियर.
राहत एवं पुनर्वास कार्य.
भूमि अधिग्रहण का मध्यस्थ और भू-राजस्व का संग्रह.
लैंड रिकॉर्ड्स से जुड़ी व्यवस्था.
कृषि ऋण का वितरण.
राष्ट्रीयता, अधिवास, शादी, एससी/एसटी, ओबीसी, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जैसे वैधानिक सर्टिफिकेट जारी करना.
जिला बैंकर समन्वय समिति का अध्यक्षता.
जिला योजना केंद्र की अध्यक्षता.
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM):
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी होता है. डीएम किसी भी ज़िले का सर्वोच्च कार्यकारी मजिस्ट्रेट अधिकारी है और उनकी जिम्मेदारी ज़िले में प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने की होती है. विभिन्न राज्यों में डीएम की जिम्मेदारियों में अंतर होता है.
जिले में कानून व्यवस्था बनाये रखना.
पुलिस को नियंत्रित करना और निर्देश देना.
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की भूमिका में रहने वाले डिप्टी कमीश्नर ही आपराधिक प्रशासन का प्रमुख होता है.
अधीनस्थ कार्यकारी मजिस्ट्रेटों का निरीक्षण करना.
मृत्यु दंड के कार्यान्वयन को प्रमाणित करना.
डिस्ट्रिक्ट के पास जिले के लॉक-अप्स और जेलों के प्रबंधन की जिम्मेदारी होती है.
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