सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत: कोरोनाकाल में सोशल मीडिया की शिकायतों को न दबाए प्रशासन

 
सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत: कोरोनाकाल में सोशल मीडिया की शिकायतों को न दबाए प्रशासन

देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि केंद्र और राज्य सरकारें निरक्षरों का वैक्सीन पंजीकरण कैसे कराएंगी जिनके पास इंटरनेट नहीं है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि 'राष्ट्रीय टीकाकरण नीति' का पालन किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि वह COVID 19 वैक्सीन की 100% खुराक क्यों नहीं खरीद रहा है.

वैक्सीनेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि निरक्षर और ऐसे लोगों के रजिस्ट्रेशन के लिए क्या व्यवस्था है, जिनके पास इंटरनेट नहीं है? 18 से 45 वर्ष के बीच की आबादी का वास्तविक आंकड़ा क्या है? केंद्र कहता है कि 50% वैक्सीन राज्यों को मिलेगी, वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स इस मामले में निष्पक्षता कैसे बरतेंगे?

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किस राज्य को, कितनी वैक्सीन मिलेगी, ये प्राइवेट वैक्सीन मैन्यूफैक्चरर्स नहीं तय करेंगे. उन्हें ये छूट नहीं दी जानी चाहिए. केंद्र को नेशनल इम्यूनाइजेशन मॉडल बनाना चाहिए, क्योंकि गरीब वैक्सीन की कीमत नहीं चुका पाएंगे.

सोशल मीडिया पर शिकायतों पर कोर्ट हुआ सख्त

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 पर सूचना के प्रसार पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 संबंधी सूचना पर रोक अदालत की अवमानना मानी जाएगी और इस सबंध में पुलिस महानिदेशकों को निर्देश जारी किए जाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि सूचनाओं का मुक्त प्रवाह होना चाहिए, हमें नागरिकों की आवाज सुननी चाहिए. स्वतः संज्ञान के तहत हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए कि नागरिकों द्वारा इंटरनेट पर की जा रही शिकायतें गलत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि यहां तक कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं. अदालत ने कहा कि स्थिति बेहद खराब है.

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