Bageshwar Dham: बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri) के सोशल मीडिया पर कई सारे ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें वह लोगों के मन में बात या उनका चहरा पढ़कर समस्या बता दे रहे हैं, जिसके वजह से लोग हैरान रह जा रहे हैं। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री सोशल मीडिया पर पहले भी सुर्खियों में रह चुके हैं, लेकिन इस बार पीठाधीश्वर महाराज पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है. नागपुर की अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने उनके खिलाफ केस दर्ज करवाया है. हालांकि इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने पलटवार करते हुए कहा था कि यह सब धर्म विरोधी लोगों का कारनामा है।
कौन हैं धीरेंद्र शास्त्री के गुरु?
धीरेंद्र शास्त्री के गुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं। धीरेंद्र शास्त्री ने रामभद्राचार्य से ही श्रीराममंत्र की दीक्षा ली है। उन्होंने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में इस बात की जानकारी दी। रामभद्राचार्य ने कहा, ‘धीरेंद्र शास्त्री का आचरण और चरित्र काफी अच्छा रहा। इसलिए मैंने उन्हें दीक्षा दी। हमारे यहां चरित्र की पूजा होती है। एक अच्छे शिष्य के अंदर जितने गुण होते हैं, वो सभी गुण उनके पास हैं।’
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ जन्म
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम गिरधर मिश्रा है। जब वह दो साल के थे, तभी उन्हें ट्रकोम नाम की बीमारी हो गई। गांव की एक महिला ने कोई दवा डाली तो आंखों से खून निकलने लगा। उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई।बचपन में आंखों की रोशनी जाने के बाद गिरधर ने काफी समस्याएं झेलीं। उनके पिता मुंबई में नौकरी करने चले गए। तब उनके दादा ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी। गिरधर को रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास जैसी किताबों का पाठ कराया। गिरधर ने महज तीन साल की उम्र में श्रीराम से जुड़ी अपनी रचना अपने दादा को सुनाई तो सब दंग रह गए। ये रचना अवधी में थी। बड़े हुए तो सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि ली। अयोध्या के ईश्वरदास महाराज से उन्होंने गायत्री मंत्र और राममंत्र की दीक्षा ली। तभी से उनका नाम भी रामभद्राचार्य हो गया। जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है।
22 भाषाओं के जानकार, 80 से अधिक रचनाएं
22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं। अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं। न पढ़ सकते हैं। न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है। उन्होंने केवल सुनकर शिक्षा हासिल की। बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। उनकी इस ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।