कानपुर में सीएमओ की कुर्सी को लेकर घमासान, डॉ. हरिदत्त नेमी और डॉ. उदयनाथ आमने-सामने

 
कानपुर में सीएमओ की कुर्सी को लेकर घमासान, डॉ. हरिदत्त नेमी और डॉ. उदयनाथ आमने-सामने

कानपुर: शहर में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) के पद को लेकर जारी विवाद गुरुवार को भी थमता नजर नहीं आया। हाई कोर्ट से स्टे ऑर्डर मिलने के बाद डॉ. हरिदत्त नेमी लगातार दूसरे दिन कार्यालय पहुंचे और सीएमओ की कुर्सी पर बैठकर कामकाज शुरू किया। उन्होंने कार्यालय में प्रवेश करते ही अपने नाम की नेम प्लेट भी लगवा दी।

डॉ. नेमी ने कहा कि शासन की ओर से जो आदेश आया है, वह केवल पिछली जांच से जुड़ा हुआ है, उसमें सीएमओ पद को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। उन्होंने दावा किया कि उनके पास हाई कोर्ट का स्थगन आदेश है, इसलिए वह वैधानिक रूप से पद पर बने रह सकते हैं। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठकों की शुरुआत भी कर दी।

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वहीं, वर्तमान सीएमओ डॉ. उदयनाथ अपनी टीम के साथ क्षेत्र के प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण करने में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि जब तक शासन से कोई नया निर्देश नहीं आता, वह अपना कार्य सीएमओ के रूप में जारी रखेंगे।

विवाद की जड़:

डॉ. हरिदत्त नेमी ने 14 दिसंबर 2023 को कानपुर में सीएमओ का पद संभाला था। जनवरी 2024 में नए जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह के कार्यभार संभालने के बाद अस्पतालों के निरीक्षण में कई खामियां सामने आईं, जिनमें अनुपस्थित स्टाफ और व्यवस्थागत लापरवाही प्रमुख रही। डीएम ने इन कमियों की जांच कर रिपोर्ट शासन को भेजी।

रिपोर्ट में डॉ. नेमी पर भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता, आयुष परीक्षा में मनमानी और वित्तीय कार्यों में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए। इसके बाद शासन ने 19 जून को उन्हें निलंबित कर लखनऊ के चिकित्सा महानिदेशक कार्यालय से संबद्ध कर दिया। उनकी जगह श्रावस्ती के एसीएमओ डॉ. उदयनाथ को कानपुर का नया सीएमओ नियुक्त किया गया।

कोर्ट से राहत और फिर से वापसी:

निलंबन के खिलाफ डॉ. नेमी ने कोर्ट का रुख किया, जहां से उन्हें राहत मिल गई। हाई कोर्ट ने उनके निलंबन पर रोक लगाते हुए उन्हें फिलहाल पद पर बने रहने की अनुमति दी है। कोर्ट के आदेश के बाद उन्होंने बुधवार और गुरुवार दोनों दिन सीएमओ कार्यालय में कामकाज संभाल लिया।

अब स्वास्थ्य विभाग में एक ही पद पर दो अधिकारियों की मौजूदगी से भ्रम और अव्यवस्था का माहौल बना हुआ है, जिसका असर चिकित्सा सेवाओं पर भी पड़ सकता है। दोनों अधिकारियों के रुख से यह साफ है कि जब तक शासन कोई स्पष्ट आदेश नहीं देता, यह विवाद थमने वाला नहीं है।

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