अंग्रेजों के द्वारा भारत के फतेहपुर में बनाया गया बेहतरीन पुल देखिए, कहानी और भी दिलचस्प है
लगभग 140 वर्ष पूर्व अंग्रेजों ने फतेहपुर जनपद के असोथर ब्लॉक में ससुर खदेरी नदी पर एक ऐसा बेहतरीन पुल बनवाया। जिसमे नीचे से नदी बह रही है और ऊपर पुल पर निचली गंगा नहर बगल मे पैदल पुल भी बना है।
अंग्रेजों ने वर्ष 1882 से 1886 के मध्य नरौरा (बुलंदशहर) से कौशाबी तक निचली गंग नहर की खुदाई प्रारंभ कराई। नहर जिले की सीमा से गुजरी तो ससुर खदेरी नामक नदी सामने आ गई।असोथर ब्लाक के बरेंडा गाव के पास इस नदी पर इस प्रकार का पुल बनाया ,जिससे नहर मे जल प्रवाह न रुक सके। नदी का पानी यमुना नदी की तरफ जाता है और इस पुल के ऊपर से गंग नहर कौशाबी चली जाती है। नदी जहां उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित हो रही हैं।
वहीं नहर पश्चिम से पूरब की ओर। यह अंग्रेजों की नायाब इंजीनियरिंग का नमूना है। पुल आज भी पूरी तरह से ठीक है तो कभी मरम्मत की आवश्यकता नहीं पड़ी। यह पुल पांच विशालकाय कोठियों पर टिका हुआ है। जिसके निर्माण में राख- चूना का प्रयोग किया गया है। आज तक पुल पूरी तरह दुरुस्त है। पुल पर बारादरी जैसी आकृति बनी है। इसकी ईंटें सुर्ख लाल हैं।
पुल के ऊपरी हिस्से में लोहे की ग्रिल नहर व नदी की पटरी के दोनों तरफ लगाई थी। पुल इस टेक्नोलॉजी से बनी है कि उपर से पूरी नहर बहने के बावजूद नीचे पानी का रिसाव नही होता। अंग्रेजों ने इस तरह की टेक्नोलॉजी का उपयोग भारत मे कई जगहों पर किया है। पीलीभीत मे बायफरकेशन के पास नहर के नीचे नहर बहती है। लखनऊ मे भी इंदिरा गांधी नहर इसी तरह इंदिरा डैम के पास बनी है। रायबरेली मे बेहटा पुल पर शारदा नहर और सई नदी एक दूसरे को काटती हैं। इस जगह पर शारदा नहर सई नदी पार कर एक जलसेतु का निर्माण करती है।
एटा/कासगंज मे नरदई पुल या झाल ब्रिज गंगा नहर और काली नदी पर बनाया गया है। यह 1885 से 1889 तक बनाया गया है। उतराखंड मे रुड़की मे भी इस तरह का पुल बना है। सबसे बड़ी बात यह है कि सभी जगह पर यह पर्यटन स्थल के रुप मे परिणत हो चुका है।