बिहार में दलितों की राजनीति लगभग आखिरी पड़ाव पर हैं

 
बिहार में दलितों की राजनीति लगभग आखिरी पड़ाव पर हैं

रामबिलास पासवान की मृत्यु के बाद बिहार में दलितों की राजनीति लगभग आखिरी पड़ाव पर थी, आवाम को एक जिम्मेदार चेहरे की दरकार थी, सारा दारोमदार चिराग पर था, लेकिन वो पिता की लाठी नहीं थाम पाए।

लोजपा टूट चुकी है, पहले विधायक और अब पांचों सांसद पार्टी छोड़कर जदयू में जा रहे है। ये बिहार की राजनीति में दलितों के प्रतिनिधित्व की सबसे बड़ी हत्या है, चिराग के अति महत्वाकांक्षी रवैया ने दलितों के मजबूत वोट बैंक को नीतीश की झोली में डाल दिया है।

आप मानिए या मत मानिए, नीतीश कुमार अपने आखिरी वक़्त में भी खुद को प्रूव कर रहे है, काबिलियत और कूटनीतिक ताकत दिखा रहे है। तो, अंतरी का दांत आप भी देख लीजिए. देखिए, कैसे एक कमजोर मुख्यमंत्री कोइरी-कुर्मी, पासवान-मुसहर और अकलियत के वोटों के मालिक बन चुके है।

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नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान की बरसी कार्यक्रम के न्योता के लिए चिराग़ पासवान को समय नहीं दिया। बाद में किसी स्टाफ़ के मार्फ़त कार्ड भिजवाया गया तो उसको वापस कर दिया और बरसी कार्यक्रम में जदयू के कोई नेता शामिल नहीं हुआ। यह बिल्कुल ही अक्खड़ और अशिष्ट व्यवहार था। और कम से कम नीतीश कुमार के क़द के नेता के लिए तो बिल्कुल ही अशोभनीय है।

एक बात तो तय है नीतीश कुमार ने बिहार में दलित राजनीति को अपनी मुट्ठी में कर लिया है।

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