करोड़ो के घर में रहने वाली यह महिला सड़क किनारे बेचती है 'छोले कुलचे'
कठिन परिस्थितियों का जीवन में एक अपना महत्त्वपूर्ण योगदान है, कुछ इनसे पार पाकर संवर जाते है तो कुछ बिखर जाते है. हालांकि जो साहस के दम पर संवरते वो ही सही मायनों में सिकंदर कहलाते है. इसका जीता-जागता उदाहरण है करोड़ों के घर में रहने वाली गुरुग्राम निवासी उर्वाशी। जिनके पीछे कभी नौकर -चाकर घूमते थे लेकिन मजबूरन परिस्थितियों में वे आज सड़क किनारे 'छोले कुलचे' बेचती है.
उर्वशी के पथ पर कई मुश्किलें आई पर वह रुकी नहीं. उन्होंने मेहनत जारी रखी और खुद पर विश्वास बनाए रखा. इसके चलते ही उनका जो सफर छोले कुलचे की रेड़ी से शुरू हुआ था, वो आज एक रेस्तरां पर जा के खत्म हुआ. वास्तव में उर्वशी की कहानी साहस और हौसले की मिसाल है.
पति के एक्सीडेंट ने बदल दी जिदंगी
बतादें, उर्वशी की शादी गुरुग्राम के एक अमीर घर में हुई थी. उनके पति अमित यादव एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छी नौकरी करते थे. घर में पैसों को कोई कमी नहीं थी, फिर आया साल 2016 और तिथि 31 मई जब उनकी ज़िन्दगी बदल गई. दरअसल उर्वशी के पति अमित का एक खतरनाक एक्सीडेंट हो गया. इस एक्सीडेंट में अमित को काफी चोटें लगी थी, जिसके चलते उनकी कई सर्जरी करवाई गई. चोट अधिक होने की वजह से सर्जरी तो कर दी गई, पंरतु अमित काम करने लायक नहीं रह गए थे. डाक्टरों ने उन्हें बैड रेस्ट की सलाह दी थी. इस सलाह के चलते अमित को मजबूरी में अपनी नौकरी छोडऩी पड़ गई. इसके बाद से परिवार के हालात बदलने शुरू हो गए.
परिवार के पास नौकरी के अलावा कमाई का कोई और ऐसा साधन नहीं था, जिससे घर को चलाया जा सके. नौकरी जाते ही बैंक में जमा सेविंगस भी धीरे धीरे खत्म होने लगी. अमित की दवाई, बच्चों की फीस और घर परिवार का खर्च चलाने में सारा पैसा खर्च होने लगा. अचानक से हुई इस आर्थिक बदहाली ने इस परिवार को मुश्किल में डाल दिया. बिना पैसों के एक भी दिन काटना संकट पूर्ण हो गया था. अमित इस हालत में नहीं थे कि वह अपने परिवार को इस चक्रव्यूह से निकाल सकें. वह बेबस थे और तनाव पूर्ण होते इन हालातों को खुली आंखों से देखकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे.
अपने कंधों पर उठाई परिवार की ज़िम्मेदारी
बिन पैसे के एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा था. अमित के ठीक होने में अभी बहुत वक़्त था. ऐसे में अपने परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाते हुए उर्वशी ने काम करने की इच्छा जाहिर की. उन्हें नौकरी करने का कोई अनुभव नहीं था. ऐसे में उन्हें कोई ऐसा काम ढूंढना था, जिससे वो आसानी से कर सकें. उर्वशी अंग्रेजी जानती थीं. इसके चलते उन्हें एक नर्सरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई. पैसे कम थे पर उस समय एक-एक पाई भी उनके लिए जरूरी थी. कुछ समय तक उर्वशी ने टीचर की नौकरी की पर उससे कमाया पैसा पर्याप्त नहीं था. खर्चे बहुत ज्यादा थे, इसलिए उन्हें कुछ ऐसा करना था जिससे अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सकें.
छोले कुल्चे बेचने की ठानी
जब उर्वशी यादव ने परिवार का पेट पालने के लिए गुड़गांव में एक छोले-कुल्चे का ठेला लगाना तय किया तब सबसे अधिक विरोध उसके ससुराल वालों ने किया. उनका कहना था कि इस तरह का छोटा काम उनकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता, लेकिन जैसे ही उर्वशी बीमार पड़ी, उसके ससुर जो कि पूर्व वायुसेना अधिकारी हैं, उसकी मदद के लिए आगे आए. सेवानिवृत्त विंग कमांडर एनके यादव ने पिछले सप्ताह पूरा स्टाल संभाला जब उर्वशी को बुखार था.
तभी से इस 71 वर्षीय शख्स ने ना केवल एक बावर्ची की मदद से यह काम संभाला बल्कि उन्होंने यह भी ठान रखा है कि उनकी बीमार बहू की गैर मौजूदगी में ठेले से होने वाली आय में कोई कमी ना आए. वे कहते हैं, "इस ठेले की खासियत मेरी बहू है जिसने सभी बाधाओं को पार करके इसकी शुरुआत की"
मेहनत लाई रंग
कुछ दिनों बाद उर्वशी की मेहनत रंग लाने लगी थी. कुछ वक़्त बाद उनके परिवार ने भी उनका पूर्ण सहयोग दिया. अकेले अपने दम पर उर्वशी ने घर का खर्च उठा लिया था. उनकी इस कहानी ने कई लोगों का ध्यान खींचा. सोशल मीडिया पर जैसे ही उर्वशी की कहानी आई तो उनके पास ग्राहकों की लंबी कतार लग गई. उनका यह ठेला अब एक सफल बिजनेस का रूप ले चुका था. वह प्रति माह इतना पैसा कमा रही थीं कि अपने पति के ठीक होने तक घर की सारी ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर उठाए रखी. एक बार जैसे ही उनके पति ठीक हुए तो घर के आर्थिक हालात फिर स्थिर होने लगे. जैसे ही सब ठीक हुआ तो उर्वशी ने इस छोटे से ठेले को एक रेस्तरां का रूप दे दिया.
उर्वशी के पास है 3 करोड़ का घर और SUV
उर्वशी के पास 3 करोड़ कीमत का एक घर है और स्कॉर्पियो समेत दो एसयूवी भी लेकिन पति के बीमार होने के बाद कमाई का स्कोप कम दिख रहा है. इसलिए उर्वशी ने भविष्य की प्लानिंग की और टीचर की नौकरी छोड़कर ठेले पर छोला-कुलचा बेचना शुरू कर दिया जिससे वो हर रोज़ 2500 से 3000 रुपए तक कमा रही हैं. उर्वशी का कहना है, “ये बात ठीक है कि मेरे पास महंगी गाड़ी, कीमती घर और पैसे अभी हैं लेकिन अगर मैंने काम ठीक-ठाक कमाई का काम शुरू नहीं किया तो ये सब खत्म हो जाएगा. मैं नहीं चाहती कि आगे चलकर बच्चों को स्कूल बदलना पड़े. पैसे की दिक्कत आगे न हो इसके लिए आज ही कदम उठाना है.”
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