59 साल बाद खुली ऐतिहासिक गरतांग गली है पर्यटकों के लिए एक रोमांचक अनुभव

 
59 साल बाद खुली ऐतिहासिक गरतांग गली है पर्यटकों के लिए एक रोमांचक अनुभव

नई दिल्लीः लगभग 59 साल बाद पर्यटकों के लिए खोली गई गरतांग गली (Gartang Gali)। यह देव भूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में स्थित ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढ़ियों का देश दुनिया के पर्यटक दीदार करने आने लगे हैं। कुछ लोगों ने इस गरतांग गली को बदरंग कर दिया है। कुछ लोगों ने लकड़ी की रेलिंग पर अपने नाम कुरेद दिए हैं। जिसके कारण से वन विभाग ने गरतांग गली की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए हैं। साथ ही 150 रुपए प्रवेश शुल्क भी अदा करना शुरू कर दिया है। हम आपको बता दें कि रोमांच के इस सफर को पर्यटकों के लिए 18 अगस्त को खोला गया था।

भारी संख्या में पर्यटक ने की रोमांचक सफर की शुरुआत

काफी भारी तादार में पर्यटक उत्तराखंड में रोमांच के सफर के लिए खोली गई 150 मीटर लंबी चीन सीमा के निकट स्थित गरतांग गली का दीदार करने। यह सीढ़ियां काफी कम समय में ही पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बन गई है। बीते दिनों उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी गरतांग गली का दीदार करने पहुंचे थे। गरतांग गली उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से लगभग 85 किमी दूर ही स्थित है। लेकिन सोशल मीडिया पर गरतांग गली का एक वीडियो वायरल होने के बाद से प्रशासन ने पर्यटकों के लिए काफी सकती बरत दी है। दरअसल यहां जाने वाले पर्यटक प्राकृतिक और कलाकृतियों के साथ छेड़- छाड़ कर इसकी सुंदरता को बर्बाद कर रहे हैं। इतना ही नहीं लकड़ी के पुल पर कुछ लोगों ने अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। जिसके बाद प्रशासन ने मुकदमा दर्ज कर जांच कर आरोपी को गिरफ्तार कर किया। साथ ही वन विभाग ने गरतांग गली में गार्ड भी तैनात कर दिए हैं। जिससे कोई असमाजिक तत्व किसी तरह का गलत काम न कर सीढ़ियों को नुक्सान न पहुंचा सके।

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59 साल बाद खुली ऐतिहासिक गरतांग गली है पर्यटकों के लिए एक रोमांचक अनुभव
Image: Instagram

भारत-तिब्बत के बीच किया जाता था व्‍यापार


समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर एक खड़ी चट्टान को काटकर यह सीढ़ी बनाई गई थी। 150 मीटर लंबी यह सीढ़ीनुमा मार्ग 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। स्थानीय लोग बताते है कि 1962 से पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से भरी रहती थी। दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर सुमला, मंडी व नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी आया करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद कर दी गई थी। हालांकि, सेना की आवाजाही होती रही थी। भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनने के बाद 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल करना बंद कर दियाथा। देख-रेख के अभाव में इसकी सीढ़ि‍यां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा काफी मुश्किल होगई थी। लेकिन अब एक बार फिर इस रास्ते को खोल दिया है। अब आप भी सरकार की नीतियों का पालन कर इस गरतांग गली का दीदार करने जा सकते हैं।

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