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नारद जयंती के अवसर पर जानिए नारद जी के जन्म की अनूठी कहानी

 

हिंदू मान्यताओं के अनुसार नारद जयंती को नारद मुनि के जन्म के उपलक्ष में मानते है. हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, जेष्ठ महा की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष ये जयंती 27 मई को मनाई जाएगी.

नारद जयंती से जुड़ी कहानी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नारद मुनि का जन्म ब्रह्मदेव की गोद में हुआ था. ब्रह्मवेवतपुराण के मुताबिक नारद मुनि ब्रह्मा जी के कंठ से पैदा हुए थे, इसलिए इन्हे ब्रह्मदेव का मानस पुत्र भी माना जाता है.

पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को शाप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे. यही वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते हैं. अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है. भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है.

यह भी कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी जबकि ब्रह्मा उन्हें सृष्टिमार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे. ब्रह्मा ने फिर उन्हें शाप दे दिया था. इस शाप से नारद गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए. इस योनि में नारदजी का नाम उपबर्हण था. यह भी मान्यता है कि पूर्वकल्प में नारदजी उपबर्हण नाम के गंधर्व थे. कहते हैं कि उनकी 60 पत्नियां थीं और रूपवान होने की वजह से वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे. इसलिए ब्रह्मा ने इन्हें शूद्र योनि में पैदा होने का शाप दिया था.

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