राजस्थान के सालासर बालाजी मंदिर की क्यों है इतनी महत्ता?

 
राजस्थान के सालासर बालाजी मंदिर की क्यों है इतनी महत्ता?

राजस्थान में वैसे तो कई देवी देवताओं का वास है. मगर हनुमानजी महाराज के दोनो बड़े मंदिर राजस्थान में ही है. एक है मेंहदीपुर बालाजी और दूसरा सालासर बालाजी. हिंदू धर्म के देवता हनुमान जी को सभी मनुष्य कई अन्य नामों से भी जानते है जैसे की बालाजी महाराज, संकटमोचन आदि. आज हम बात करेंगे राजस्थान में बने सालासर धाम की, आखिर वहां ऐसा क्या है जो लोग सालासर बालाजी को इतना मानते है.

सालासर धाम राजस्थान के चुरू जिले स्थित है. यह जयपुर बीकानेर राजमार्ग पर सीकर से लगभग 60किमी की दूरी पर है. हनुमान जी महाराज के इस मंदिर की यह मान्यता है कि यहां आने वाला कोई भी भक्त अपनी झोली खाली लेकर नही लौटता है. बालाजी महाराज अपने भक्तों की झोली सदैव भरते है.

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सालासर धाम में पूरे वर्ष देश विदेश से भक्तों का आना जाना लगा रहता है. इस धाम में मंगलवार, शनिवार और पूर्णिमा को दर्शन करने का अधिक महत्व माना जाता है. इस धाम में चैत्र मास की पूर्णिमा को सबसे बड़ा मेला लगता है, जिसको हम हनुमान जयंती के मेले के नाम से भी जानते है.

सालासर बालाजी मंदिर

सालासर धाम की घटना 1754 से शुरू होती है. सीकर जिले के एक गांव में लक्ष्मीराम जी रहते थे जिनके कई पुत्र और पुत्री थे उन्हीं में से सबसे छोटे पुत्र थे मोहनदास जी. वह बचपन से ही संत प्रवृत्ति के मनुष्य थे और अपना अधिक समय सत्संग और भजन कीर्तन में व्यतीत किया करते थे. मोहनदास जी के जन्मोप्रांत ही संतों ने कहा था कि वह संत की भाती अपना जीवन व्यतीत करेंगे और धार्मिक प्रवृत्ति के रहेंगे. साथ ही उन्हें इसकी वजह से विश्व भर में ख्याति प्राप्त होगी.

मोहनदास जी की एक बहन का विवाह सालासर के रहने वाले एक व्यक्ति से हुआ उनके विवाह के कुछ समय पश्चात उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसके कुछ समय पश्चात मोहनदास जी के जीजा जी यानी उनकी बहन के पति का देहांत हो गया. कम उम्र में देहांत होने के बाद बहन की बढ़ती परेशानियों को संभालने के लिए मोहनदास जी सालासर अपनी बहन के घर रहने और उसकी मदद करने चले गए. मोहनदास जी के वहां पहुंचने के बाद से उनकी बहन की सभी परेशानियां दूर हो गई और कुछ समय बाद अब उनका भांजा भी बड़ा हो गया था और अब उसकी शादी का समय था. इस समय ठाकुर वहां की प्रजा पर राज करते थे.

तभी वहां की देखभाल कर रहे ठाकुर धीरज सिंह को पता चला कि उनके इलाके पर डाकू हमला करने वाले है. इस बात का पता लगते ही ठाकुर धीरज सिंह ठाकुर सालम सिंह के कहने पर मोहनदास जी की शरण में आ गए और उन्हें पूरी व्यथा सुना दी. जिसके बाद मोहनदास जी ने उन्हे सलाह दी कि वह डाकुओं के जत्थे पर लटके उनके विजय पताका पर बालाजी का नाम लेकर गोली चला दे. उन्होंने डाकुओं के हमले के समय ऐसा ही किया इससे डाकुओं का सरकार उनके कदमों में आ कर गिर गया. इसके बाद से दोनों ही ठाकुर मोहनदास जी की शरण में रहने लगे.

इस प्रकरण के बाद मोहनदास जी के मन में बालाजी महाराज या एक विशाल मंदिर बनाने का विचार आया. इस विशाल मंदिर को बनाने के लिए ठाकुर सालम सिंह ने भी उनका पूर्ण साथ दिया. तभी आसोटा गांव में एक किसान जब खेत जोत रहा था तो उसके खेत में एक मूर्ति निकली जिसको उसने खोद कर निकल लिया मगर उस पर ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद उस किसान की तबियत अचानक से बिगड़ने लगी. जब उस किसान की पत्नी उस किसना को खाना लेकर आई तो उसने अपने पति की बिगड़ी हालत देखी और उससे पूरी बात जानी.

तब उस किसान ने उसको सुबह से हुए सभी कृत्यों से अवगत कराया. जिसमे उसने खुदाई के दौरान मिली मूर्ति का भी जिक्र किया. किसान की पत्नी ने तुरंत ही मूर्ति को साफ किया और देखा की वह काले रंग की एक शिल्प थी जिसपर हनुमान जी एक कंधे पर लक्ष्मण जी को और दूसरे कंधे पर प्रभु श्री राम को लेकर जा रहे थे। उस शिल्प को देखने के बा महिला ने जो भोजन अपने पति के लिए बनाया था पहले उसका भोग उस मूर्ति के अर्पित किया और भोग अर्पित होने के बाद ही किसान खुद ठीक हो गया.

जिसके बाद उसने उस मूर्ति को वही स्थापित कर दिया. मगर फिर रात में बालाजी महाराज ने उस गांव के चंपावत को सपने में दर्शन दिए और कहा की इस किसान से इस मूर्ति को लेकर अपने दामाद ठाकुर सालम सिंह को दे। साथ ही एक और बात कही कि जहां भी आपकी बैलगाड़ी रुकेगी वही इस मूर्ति को स्थापित कर देना और मोहनदास जी को बता देना मंदिर वहीं बनेगा. इसके बाद अगली सुबह किसान से मूर्ति लेकर चंपावत बैलगाड़ी में सवार होकर चल दिए. उसके बाद वह बैलगाड़ी सालासर में जा कर रुकी और जिस जगह रुकी वही चंपावत जी ने मूर्ति को स्थापित करवा दिया. इसके बाद उन्होंने अपने दामाद ठाकुर सलाम सिंह और मोहनदास जी को वही मंदिर की स्थापना कर्ण को कहा और अपने सपनेंके बारे में बताया.

मोहनदास जी ने यह सब सुनने के बाद वही एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और तभी से इस मंदिर का नाम सालासर बालाजी मंदिर पढ़ गया. इस मंदिर में दाढ़ी मूछों वाले बालाजी महाराज के दर्शन होते है और 24घंटे 7 दिन मोहनदास जी महाराज की समाधि पर हवन की अग्नि प्रजुलित रहती है.

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