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Bhagwat Geeta: श्री कृष्ण से पहले इन देवता ने दिया था गीता का ज्ञान, जानिए ये अनोखा रहस्य

 

Bhagwat Geeta: हिंदू धर्म में कई वेद और पुराण लिखे गए हैं. जिनके अलग अलग रचयिता है और कथावाचक हैं. हम लोगों ने अक्सर सुना है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं असल में भगवान कृष्ण से पहले गणेश जी ने गीता का ज्ञान सुनाया था?

जी हां, सब देवों में प्रथम पूजनीय गणपति जी हिंदू धर्म के सर्वप्रथम पूजे जाने वाले देवता हैं. भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं. गणेश जी के कई अवतारों में उनकी कई कथाएं प्रचलित हैं. इन्हीं कथाओं में गणपति जी ने अपने पिता वरेण्य राजा को गीता का ज्ञान सबसे पहले दिया था.

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दरअसल, एक बार देवराज इंद्र और सभी देवी - देवता सिंदूरा नाम के एक दैत्य के अत्याचारों से दुखी हो गए थे. जिसकी शिकायत वे ब्रह्मा जी के पास लेकर गए. ब्रह्मा जी ने उन्हें गणपति जी के पास भेज दिया. अब गणपति जी का रूप उन्होंने माता पार्वती और शिव जी के पुत्र के रूप में लिया. जिस समय देव गजानन ने जन्म लिया उसी समय राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म ले लिया.

गणेश जी के पिता वरेण्य कैसे हुए?

राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका को प्रसव के दौरान काफी पीड़ा हुई और वह मूर्छित हो गई. उसी समय एक राक्षसनी उनके पुत्र को उठाकर ले गई. लेकिन रानी के उठने से पहले ही भगवान शिव के गणों ने उनके पुत्र के स्थान पर गजानन को भेज दिया. दरअसल गणपति जी ने राजा को पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. ऐसी ही परिस्थितियों से गजानन राजा के पुत्र बन गए. लेकिन जब रानी ने गजानन को हाथी के गणपत रूप में देखा तो वह डर गई.

गणपति को जंगल से छुड़वा दिया था राजा ने

जब रानी गजानन का मुख देखकर भयभीत हो गई तब राजा ने बालक को जंगल में छुड़वाने का आदेश दे दिया. राजा के अनुसार ऐसा बालक राज्य के लिए अशुभ है. इसी माया मोह में वह अपना पाया गया वरदान भी भूल गया. लेकिन जंगल में जब महर्षि पाराशर ने बालक के शुभ लक्षणों को देखा तो वह उसे आश्रम ले आए. इस आश्रम में पराशर ऋषि और उनकी पत्नी ने गणपति जी का पालन पोषण किया. लेकिन जब राजा को सत्य का बोध हुआ तो उन्होंने गणपति जी से क्षमा याचना की.

इस प्रकार सुनाई गीता की गाथा

जब राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया तो उन्हें अपने पूर्व जन्म के वरदान का भी स्मरण हो गया. जिसके बाद गणेश जी ने अपने पिता से स्वाधम यात्रा की आज्ञा मांगी. लेकिन यह बात सुनकर राजा की आंखों में आंसू आ गए और गणेश जी से अपना अज्ञान दूर करने के लिए मार्गदर्शन मांगने लगे. उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए गणेश जी ने अपने पिता राजा वरेण्य को ज्ञान का उपदेश दिया. जिसे गीता का सार कहा जाता है.