Chaitra Navratri 2023: कैसे हुई थी देवी माता के शक्तिपीठों की उत्पत्ति? छिपा है अनोखा रहस्य...

 
Chaitra Navratri 2023: कैसे हुई थी देवी माता के शक्तिपीठों की उत्पत्ति? छिपा है अनोखा रहस्य...

Chaitra Navratri 2023: इन दिनों चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. चैत्र नवरात्रि के दिनों में माता रानी के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति क्षेत्र नवरात्रों में माता रानी का पूजन विशेष तौर पर करता है, उसके जीवन में माता रानी अपनी कृपा सदैव बनाए रखती हैं. इतना ही नहीं माता रानी के व्रत का संकल्प लेने मात्र से व्यक्ति के जीवन में सुख शांति समृद्धि बनी रहती है. ऐसे में यदि आप भी चैत्र नवरात्रों में माता रानी के विशेष पूजन में लगे हैं, तो आपको चैत्र नवरात्रों के दिनों में यह भी जानना बेहद आवश्यक है कि माता के शक्तिपीठों का क्या महत्व है और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई? तो चलिए जानते हैं…

दुर्गा माता के शक्तिपीठों का रहस्य

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,जब माता सती ने अग्नि में प्रवेश किया था, तब प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री सती के मृत शरीर को लेकर धरती पर जगह-जगह घूम रहे थे. ऐसे में भगवान शिव के उस दौरान मौजूद ना होने की वजह से सृष्टि का संचालन अनियंत्रित हो गया था. जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता शरीर के मृत शरीर को टुकड़ों में परिवर्तित कर दिया था. जिसके बाद माता के शरीर के अंग जिस-जिस जगह पर गिरे, वहां शक्ति पीठ स्थापित हो गए. जोकि माता के बेहद पवित्र स्थल माने जाते हैं. कहा जाता है जो भी व्यक्ति माता की शक्तिपीठों के दर्शन करता है, उस व्यक्ति के जीवन में सभी दु:खों का नाश माता रानी करती है. ऐसे में आगे हम जानेंगे कि माता सती के शक्तिपीठ कहां कहां मौजूद हैं?

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माता सती के पांव की 4 उंगलियां जिस जगह पर गिरी, उस जगह को कालीघाट मंदिर के नाम से जाना जाता है. जोकि पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मौजूद हैं.

भगवान विष्णु के प्रहार से माता सती की तालुका गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बसी पहाड़ियों के ऊपर गिरी. जहां माता सती का अंबाजी मंदिर स्थित है. इसी स्थान पर माता सती का हृदय भी मौजूद है.

कहा जाता है माता सती का बायां हाथ और ओंठ का ऊपरी हिस्सा जिस जगह पर गिरा था, वह जगह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास मौजूद है. जिसे हरसिद्धि मंदिर के नाम से जाना जाता है.

माता सती के नेत्र जिस स्थान पर गिरे थे, उसे ज्वाला देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है, जोकि हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी माता के नेत्र गिरे थे.

मां सती का बायां वक्ष जिस स्थान पर गिरा था, वहां माता को व्रजेश्वरी देवी के नाम से पूजा जाता है, यह मंदिर भी हिमाचल प्रदेश में स्थित है.

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जहां माता सती के नयन प्राप्त हुए थे, उस जगह का नाम तारापीठ पड़ा है, जोकि पश्चिम बंगाल के बीरभूल में मौजूद है.

मां सती का त्रिनेत्र महाराष्ट्र के कोल्हापुर में गिरा था, जहां पर माता का महालक्ष्मी मंदिर स्थित है.

भगवान विष्णु के प्रहार से माता सती की योनि का भाग कामाख्या मंदिर में पूजा जाता है, जोकि असम गुवाहाटी में स्थित है.

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