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Gangaur vrat: भोलेनाथ जैसा जीवनसाथी पाने के लिए इस दिन जरूर करें व्रत का पालन, होगा लाभ

 

Gangaur vrat: होली के बाद गणगौर पूजन का आयोजन किया जाता है. विशेष तौर पर भारत के राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्य में गणगौर का त्योहार बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन भारत के अन्य कई राज्यों में भी इस पर्व की खासा धूम देखने को मिलती हैं. गणगौर का पर्व इस बार 8 मार्च से शुरू होकर 24 मार्च तक यानी कुल 17 दिनों तक चलेगा. गणगौर का शाब्दिक अर्थ है भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा. ऐसे में 17 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में सभी महिलाएं अपने दांपत्य जीवन की खुशियां बनाए रखने के लिए इस दिन व्रत का पालन करती हैं. इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी अच्छा वर पाने के लिए गणगौर व्रत का पूजन करती हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणगौर का व्रत क्यों रखा जाता है? और इस दिन विधि-विधान से कैसे माता पार्वती भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए? यदि नहीं तो हमारे इस लेख में हम आपको इसी के बारे में जानकारी देने वाले हैं. तो चलिए जानते हैं….

गणगौर व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए गणगौर व्रत का विधि विधान से पालन किया था. इस दौरान माता पार्वती ने कठिन तप और साधना के साथ भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया. ऐसे में माता पार्वती ने एक अच्छा वर पाने के लिए इस व्रत को अन्य महिलाओं के साथ भी साझा किया. यही कारण है कि गणगौर का व्रत सभी महिलाएं और कुंवारी कन्याएं रखती हैं, और विधि-विधान से इसका पालन करती हैं.

गणगौर व्रत कैसे करें?

1. व्रत से पहले हरे रंग की दूब को फूलों के साथ बगीचों से इक्कठा करें. फिर सिर पर पानी का लोटा रखकर गीत गाते हुए घर की ओर लौटें.

2. इसके बाद माता पार्वती और शिव जी की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं. फिर उसपर हल्दी, मेहंदी, काजल, रोली इत्यादि चढ़ाएं.

3. इस दिन व्रत का संकल्प करते हुए कुंवारी कन्याएं 8 और सुहागिन महिलाएं 16 बिंदिया दीवार पर लगाती हैं.

4. इसके बाद पानी, दही, दूध, कुमकुम और हल्दी को घोलकर सुहाग जल बनाती हैं. इसके बाद सुहागजल को अपने ऊपर हरी दूब के माध्यम से छिड़कती हैं, जिसे सुहाग की निशानी माना जाता है.

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5. गणगौर व्रत के दौरान महिलाएं गणगौर की कथा सुनती है और मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर अपनी सास को बायना देती हैं।

6. सूर्यास्त के बाद गणगौर की प्रतिमा को किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है. और उनसे मंगल कामना की जाती है.