काल भैरव जी का महत्व…जानिए गूढ़ रहस्य
काल भैरव जी के स्वरूप की बात करें तो स्थूल शरीर, गहरा काला रंग, अंगारकाय त्रिनेत्र, विशाल प्रलम्ब, काले वस्त्र, रुद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी. ऐसे है काल भैरव जिन्हें मृत्युभय का देवता कहा जाता है. इनके स्वरूप की कल्पना करने मात्र से ही व्यक्ति भयभीत हो उठता है. बताया जाता है कि मार्गशीर्ष यानी अगहन की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जी प्रकट हुए थे. शिवपुराण में इसका विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. उसमें बताया गया है कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. और इस तिथि को भैरवाष्टमी भी कहते हैं.
काल भैरव जी के प्रकट होने का रहस्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार अंधकासुर नाम के राक्षस ने इतनी अनीति व दुराचार किया. और जब उसके पापों का घड़ा बढ़ गया. तब उसके घमंड को चूर चूर करने के लिए. भगवान शिव ने अपने रुधिर से काल भैरव की उत्पत्ति की. क्योंकि उसने भगवान शिव पर भी आक्रमण किया था. काल भैरव की उत्पत्ति का एक मात्र उद्देश्य पृथ्वी लोक से दैत्यों का संहार करना था. कुछ पुराणों में बताया गया है कि शिव का अपमान किये जाने के कारण काल भैरव की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है कि यह सृष्टि के आरंभ की ही बात है. जब ब्रह्मा जी ने शिव जी को उनकी वेशभूषा को देखते हुए अपमान जनक शब्द प्रयुक्त किए.
तब बताया जाता है कि शिव ने तो यह अपमान नज़रअंदाज़ कर दिया किन्तु उनके शरीर से स्वतः क्रोधवश एक विशाल प्रचण्डकारी एवं देदीप्यमान काया प्रकट हुई. और वह ब्रह्मा पर आक्रमण करने को उतावली हो गयी. जब शिव जी ने देखा कि यह तो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का संहार ही कर देगा तो उन्होंने उस काया को शांत किया. उसी काया को कालभैरव नाम से जाना जाता है. इसके बाद भगवान शिव ने अपनी नगरी काशी का कोतवाल उनको बना दिया.
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