Jain bhajan: जैन धर्म विश्व के सबसे पुराने धर्मों में से एक है. जिसको दुनिया भर में मानने वाले कई सारे लोग हैं. जैन धर्म के लोग महावीर स्वामी और बुद्ध को भगवान के तौर पर पूजते हैं.
और बेहद ही सरल और साधारण जीवन व्यतीत करते हैं. जैन धर्म का पालन करने वाले लोग योग और साधना का प्रयोग ईश्वर की पूजा के लिए करते हैं.
ऐसे में हमारे आज के इस लेख में हम आपके लिए जैन धर्म के लोकप्रिय भजन हिंदी में लेकर आए हैं. जिनको पढ़कर या सुनकर आपके जीवन में अवश्य ही सकारात्मक बदलाव आएगा.
यहां पढ़िए लोकप्रिय जैन भजन….
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
मीठे मीठे भजन सुनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
हम तो है गुरुवर के जन्मो से दीवाने,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
घर का कोना-कोना हमने फूलों से सजाया,
बंधनवार सजाई, घी का दीपक जलाया ||
भक्त जनों को हम बुलाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
गंगाजल की धार से गुरु को न्हावन कराऊं,
भोग लगाऊं, लाड़ लड़ाऊं, आरती उतारू ||
खुशबू ही खुशबू हम उड़ाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
अब तो एक ही लगन लगी है, प्रेमसुधा बरसा दो,
जनम जनम की मैली चादर, अपने रंग रंगा दो ||
जीवन को सफल बनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
मीठे मीठे भजन सुनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
हम तो है गुरुवर के जन्मो से दीवाने,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
आतम के सुज्ञान का सुभान हो गया,
भव का विनाशी तत्वज्ञान हो गया ||
तेरी सच्ची प्रीत की यही है निशानी,
भोगों से छूट बने आतम सुध्यानी,
कर्मों की जीत का सुराज मिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
तेरे तेरी परतीत हरे व्याधियाँ पुरानी,
जामन मरण हर दे शिवरानी, प्रभो सुख शान्ति सुमन आज खिल गया,
‘के’ मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
ज्ञानानंद अतुल धन राशि,
सिद्ध समान वरूँ अविनाशी,
यही सौभाग्य शिवराज मिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||||
तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
जिसने राग-द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया,
बुद्ध, वीर जिन, हरि, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो||||1||
विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं
निज-पर के हित साधन में जो निशदिन तत्पर रहते हैं,
स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख-समूह को हरते हैं||||2||
रहे सदा सत्संग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का नित्य रहे
उन ही जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे,
नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूं
पर-धन-वनिता पर न लुभाऊं, संतोषामृत पिया करूं||||3||
अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर खेद करूं
देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं,
रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं
बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं||||4||
मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे
दीन-दुखी जीवों पर मेरे उरसे करुणा स्त्रोत बहे,
दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे
साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे||||5||
गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे
बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे,
होऊं नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे
गुण-ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे||||6||
कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे
लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे||
अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे||
तो भी न्याय मार्ग से मेरे कभी न पद डिगने पावे||||7||
होकर सुख में मग्न न फूले दुख में कभी न घबरावे
पर्वत नदी-श्मशान-भयानक-अटवी से नहिं भय खावे,
रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन, दृढ़तर बन जावे
इष्टवियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे||||8||
सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे
बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग नित्य नए मंगल गावे,
घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे
ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म फल सब पावे||||9||
ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें वृष्टि समय पर हुआ करे
धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे,
रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे
परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे||||10||
फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे
अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे,
बनकर सब युगवीर हृदय से देशोन्नति-रत रहा करें
वस्तु-स्वरूप विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करें||||11||
तेरी शीतल शीतल मूरत लख,
कही भी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||
सूरत को निहारे पल पल तव छवि दूजी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||
भव दुख दाह सही है घोर कर्म बली पर चला न जोर,
तुम मुख चन्द्र निहार मिली अब,
परम शान्ति सुख शीतल ठोर,
निज पर का ज्ञान जगे घट में भव बंधन भीड़ थमे, प्रभु शीतल ||
तेरी शीतल शीतल. सकल ज्ञेय के ज्ञायक हो एक तुम्ही जग नायक हो,
वीतराग सर्वज्ञ प्रभु तुम निज स्वरूप शिवदायक हो,
‘सौभाग्य” सफल हो नर जीवन, गति पंचम धाम धमे, प्रभु शीतल ||
तेरी शीतल शीतल मूरत लख, कही भी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||
तेरी शीतल शीतल ……
केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन
केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन केसरिया ||
तन केसरिया, मन केसरिया, पूजा के चावल केसरिया,
भक्ति में हम सब केसरिया|| केसरिया…||
हम केसरिया, तुम केसरिया, अष्ट द्रव्य सब हैं केसरिया,
मंदिर की है ध्वजा केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||
इन्द्र केसरिया, इन्द्राणि केसरिया, सिद्धों की पूजन केसरिया,
पूजा के सब भाव केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||
वीर प्रभु की वाणी केसरिया, अहिंसा परमो धर्म केसरिया,
जीयो जीने दो केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||
पीछी केसरिया, कमण्डल केसरिया,दिगम्बर साधु भी केसरिया
शत शत वंदन है केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||
स्वर्णिम रथ देखो केसरिया, स्वर्ण वरण प्रभुजी केसरिया,
छत्र चंवर ध्वज सब केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||