संत एकनाथ षष्ठी क्यों मनाई जाती है...जानिए महत्व
संत एकनाथ जी प्रसिद्ध मराठी संत थे. एकनाथ जी का जन्म चैत्र कृष्ण षष्ठी को पैठण में हुआ था. इनके पिता जी का नाम श्री सूर्यनारायण एवं माता जी का नाम रुक्मणी था. कहा जाता है कि एकनाथ जी अपूर्व सन्त थे. और बेहद बुद्धिमान थे. एकनाथ जी कवि भी थे. उन्होंने श्रीमद्भागवत एकादश स्कंध का मराठी-टीका, रुक्मिणी स्वयंवर व भावार्थ रामायण आदि की रचना की. संत एकनाथ जी ने जिस दिन जिस दिन समाधि ली थी. उसी दिन को एकनाथ षष्ठी के रूप में मनाया जाता है.
संत एकनाथ और उनका पुत्र
एकनाथ जी के पुत्र का नाम हरि पंडित था. एकबार रुढ़िवादी विचारधारा के लोगों ने हरि को भड़का दिया. कि तुम्हारे पिता पवित्र धर्मग्रंथों का पाठ मराठी भाषा में करते हैं. और सब लोगों के यहां भोजन कर लेते हैं. अपना धर्म भ्रष्ट कर लेते हैं. जब हरि अपने पिता से यह बातें करता है तो एकनाथ जी उसे तर्कों के माध्यम से समझाते हैं. किन्तु हरि को उनकी बातें समझ नहीं आती. एक दिन हरि अपने पिता एकनाथ जी से बोला कि या तो आप मेरी बात मानिए नहीं तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा. क्यों कि हम लोगों के मत बिल्कुल भिन्न हैं. इतना कहकर हरि घर छोड़कर चला गया. और वाराणसी में जाकर रहने लगा. पुत्र के घर छोड़ने के बाद एकनाथ जी की पत्नी गिरिजा, परेशान रहने लगीं. और उन्होंने अपने पति से ज़िद की हरी को वापस लाने की. एकनाथ जी मान गए और पुत्र को वापस ले आए. जिसके बाद एकनाथ जी ने संस्कृति में पाठ करना शुरू कर दिया. इसका असर यह हुआ कि उनके श्रोताओं की संख्या घट गई।
चमत्कारी घटना और महत्व
एक बार एक वृद्धा एकनाथ जी के पास आईं. और बोली कि मैं एक हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहती हैं. किन्तु मैं वृद्ध एक हज़ार ब्राह्मणों को कहां खोजती फ़िरोगी. इसलिए आप से निवेदन है कि आप अकेले ही भोजन करने चले. आपको भोजन कराकर मुझे एक हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना पूण्य मिलेगा. एकनाथ जी ने कहा ठीक है मैं आऊंगा. वह अपने साथ अपने पुत्र हरि को भी ले गए. दोनों ने सप्रेम भोजन किया. भोजन के पश्चात जब हरि ने पिता की जूठी पत्तल हटाई तो एक पत्तल के नीचे दूसरी पत्तल दूसरे के नीचे तीसरी पत्तल इसी क्रम में एक हज़ार पत्तलें निकली. तब हरि समझ गया कि उनके पिता कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं. उनमें हज़ार ब्राह्मणों का ज्ञान है. हरि ने पिता से माफ़ी मांगी और कहा कि आप जो करना चाहते हैं कीजिए मैं कभी नहीं रोकूंगा.
भारत भूमि संतो की भूमि मानी गई है. यहां एक से बढ़कर एक विद्वान संत हुए हैं. आप लोग भी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पैठण में जाकर संत एकनाथ जी के आश्रम के दर्शन कर सकते है. इससे बहुत पूण्य मिलेगा.
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