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नाग पंचमी: महाकालेश्वर मंदिर में है 11वीं शताब्दी की नागचंद्रेश्वर भगवान की दुर्लभ प्रतिमा, जानिये महत्व

 

13 अगस्त को नाग पंचमी है जो साल सिर्फ नाग पंचमी पर ही उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर पर मौजूद नागचंद्रेश्वर भगवान के पट आम भक्तों के लिए खोले जाते हैं। इस बार भी कोरोना वायरस की वजह पिछले साल की तरह ही नागचंद्रेश्वर की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन आम भक्त नहीं कर पाएंगे। मंदिर समिति की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर भक्तों के लिए लाइव दर्शन की व्यवस्था की गई है। 2020 में भी कोरोना की वजह से भक्त नागचंद्रेश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन नहीं कर सके थे।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व काफी अधिक है। प्राचीन शास्त्रों में भी महाकालेश्वर मंदिर का उल्लेख मिलता है। महाकाल मंदिर की वर्तमान इमारत का इतिहास करीब 250-300 साल पुराना है। मुगलों के समय में प्राचीन महाकाल मंदिर ध्वस्त हो चुका था। इसके बाद मराठा राजाओं ने उज्जैन पर राज किया। राणोजी सिंधिया ने अपने शासनकाल में महाकाल मंदिर का निर्माण फिर से करवाया था।

प्रतिमा में नाग आसन पर विराजित हैं महादेव और देवी पार्वती

Image credit: instagram

मंदिर में नागचंद्रेश्वर की दुर्लभ प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। इस प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती विराजित हैं। महाकालेश्वर मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर ये प्रतिमा स्थित है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में प्रवेश करते ही दीवार पर भगवान नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा दिखाई देती है।

भक्त कर सकेंगे ऑनलाइन दर्शन

कोरोना महामारी के चलते नागपंचमी पर आम श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर के दर्शन नहीं कर सकेंगे। श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की वेबसाइट www.mahakaleshwar.nic.in और सोशल मीडिया पर ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा सिर्फ भक्तों को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी प्री-बुकिंग के आधार पर ही कराए जाएंगे। भक्तों को मंदिर में महामारी से संबंधित नियमों का पालन करना होगा।

दुनिया का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकालेश्वर

महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। ये द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम में तीसरा है। मान्यता है कि दक्षिणमुखी होने की वजह से महाकाल के दर्शन से असमय मृत्यु के भय और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। सिर्फ इसी मंदिर में रोज सुबह भस्म आरती की जाती है।

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