शीतला अष्टमी, सप्तमी व षष्ठी विधि एवं महत्व

 
शीतला अष्टमी, सप्तमी व षष्ठी विधि एवं महत्व

शीतला अष्टमी व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. शीतला अष्टमी प्रत्येक वर्ष होली के 8 दिनों के बाद मनाई जाती है. इस अष्टमी को बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. आपको बता दें कि इस वर्ष शीतला अष्टमी 4 अप्रैल की है. मान्यता है कि शीतला अष्टमी को बासी भोजन का भोग माता को लगाया जाता है. और बाद में उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. इससे शीतला माता प्रसन्न होती हैं. आपको बता दें कि हिन्दू पंचांग व धार्मिक कथाओं के अनुसार शीतला षष्ठी और शीतला सप्तमी का भी विशेष महत्व है.

शीतला अष्टमी

सर्वप्रथम प्रातः काल उठकर स्नान करें. फिर पूजा की थाली तैयार करें. जिसमें दही, पुआ, रोटी, बाजरा, मीठे चावल इत्यादि रखें. और दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, चंदन, वस्त्र, अक्षत, हल्दी इत्यादि रखें. दोनों थालियों के किसी पात्र में ठंडा जल भी रखें. फिर माता की पूरे विधि-विधान से पूजा करें. और घर के सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं.

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शीतला सप्तमी

शीतला सप्तमी त्यौहार हिंदुओं का लोकप्रिय त्यौहार है. माना जाता है कि लोग अपने परिवार के सदस्यों की चेचक व छोटी माता जैसी बीमारियों से बचाने के लिए इस दिन शीतला माता की पूजा करते हैं. शीतल सप्तमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है. इस दिन पर श्रद्धालु शीतला माता की पूजा व अनुष्ठान करते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन भर सिर का मुंडन कराते हैं. तो माता अधिक प्रसन्न होती हैं.

शीतला षष्ठी

शीतला षष्ठी माघ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है. यदि किसी महिला को संतान प्राप्ति नहीं हो रही हो. और वह पूरे विधि विधान से शीतला षष्ठी का व्रत करती है. तो माता शीतल के आशीर्वाद से उनको सन्तान प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि शीतला माता को शांत व प्रसन्न करने के लिए भी यह व्रत रखा जाता है.

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