खप्पर पूजा क्यों की जाती है… जानिए इसका महत्व और पूजा विधि
ब्रज में खप्पर पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. यह शिवरात्रि पर्व के दूसरे दिन मनाया जाता है. मथुरा के शिव मंदिरों में खप्पर पूजन का आयोजन महाशिवरात्रि के बाद यानि अमावस्या तिथि को किया जाता है. लोगों का मानना है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण खप्पर पूजा विधि विधान के साथ किया करते थे. माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले की आराधना खप्पर पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है. इस पूजा का आयोजन शिव मंदिर के अलावा कुछ आस्थावान लोग अपने घरों में भी करते हैं.
खप्पर पूजा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार देवों के देव महादेव का परिवार बहुत बड़ा विशाल माना गया है. वैसे तो उनके पास कुछ भी नहीं था. वे भांग पीकर और भस्म लगाकर श्मशान में रहते थे. लेकिन देखा जाए तो भोले शंकर के परिवार में भूत-प्रेत, नदी, सिंह, सर्प, मयूर, मूषक सभी आते हैं. यह सब भूखे रहते थे. इन सभी को भूखा देखकर भगवान शंकर एक दिन मां के पास पहुंचे और मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगने लगे. तभी मां अन्नपूर्णा ने भोले शंकर के लकड़ी से बने खप्पर में अन्न डाल दिया जिससे खप्पर पूरा भर गया और आज तक खाली नहीं हुआ है. मान्यता है कि उसी खप्पर से मां अन्नपूर्णा पूरी सृष्टि का पालन करती है.
पूजा विधि एवं महत्व
भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर स्थापित है. जो इस प्रकार है पूर्व में पिंपलेश्वर, पश्चिम में भूतेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर और उत्तर में गोकर्णेश्वर. इन मंदिरों में से रंगेश्वर महादेव मंदिर में खप्पर और जेहर पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. जेहर पूजा महाशिवरात्रि पर्व के दिन नवविवाहिताएं पुत्र प्राप्ति के लिए श्रद्धा भाव के साथ करती है. कहा जाता है कि भगवान शिव कई बार द्वापर युग में ब्रज आए थे. आइए जानते हैं ब्रज में खप्पर पूजा किस तरह की जाती है.
-ब्रज में खप्पर पूजन अधिक प्रचलित है.
-महाशिवरात्रि पर्व के दूसरे दिन अमावस्या तिथि को खप्पर पूजन का आयोजन किया जाता है.
इस पूजन में विधि विधान के साथ भोले शंकर की पूजा की जाती है. -उसके बाद खप्पर पूजा में साधु संतों को देवों के देव महादेव का दूत मानकर भेंट स्वरूप दान दिया जाता है.
-साधु संतों के हाथों में जो कटोरे नुमा लकड़ी का खप्पर होता है वहां के लोग उस खप्पर को कड़ी चावल से भर देते हैं.
वर्ष 2021 में शिव खप्पर पूजन फाल्गुन मास की अमावस्या तिथि, दिनांक 12 मार्च और दिन शुक्रवार को आयोजित किया जाएगा.
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