कुंभ मेले में स्नान करने से क्या होता है लाभ

 
कुंभ मेले में स्नान करने से क्या होता है लाभ

वैदिक ग्रंथों में कुंभ का घड़ा, सुराही, बर्तन आदि शब्द प्रचलित है. इसका अर्थ अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमृत से जुड़ा होता है. मेले शब्द का अर्थ एक जगह इकट्ठा होना होता है. यह शब्द ऋग्वेद व अन्य प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी पाया जाता है. इस प्रकार कुंभ मेले का अर्थ है एक सभा-मिलन जहां जल या अमरत्व का अमृत प्राप्त होता है. यह पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. मेले में स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन माना जाता है. 2021 में कुंभ मेले का आयोजन तीर्थ नगरी हरिद्वार उत्तराखंड में होगा. कुंभ के मेले की शुरुआत सम्राट हर्षवर्धन के समय समुद्र मंथन से ही हो गई थी. प्रत्येक 12वीं वर्ष में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में जो त्रिवेणी संगम पर स्नान करता है. उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है. क्योंकि इस संगम स्थल पर ही अमृत की बूंद गिरी थी. दूसरी ओर, कुंभ मेले में स्नान के दौरान आकाश में उषा की लालिमा दिखने से पहले ही स्नान कर लेना चाहिए.

कुंभ मेले के लाभ

कुंभ स्नान अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. इसमें स्नान करने से अनेक लाभ होते हैं.

-यहां स्नान करने से आत्मा और शरीर शुद्ध होता है. और लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैं.
-इसमें स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
-मेले के दौरान स्नान से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. और साथ ही पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है.
-स्नान से अमरता (लंबी उम्र) मिलती है.
-यह स्नान सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है.
-पवित्र नदियों में स्नान करना महान पुण्यदायक माना गया है.
-स्नान करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है.
-कुंभ के मेले में स्नान करने पर मनुष्य ना सिर्फ मृत्यु पर विजय पाता है, बल्कि इसमें स्नान, दान, धर्म, जप, तप आदि करने से संपूर्ण पृथ्वी को एक लाख परिक्रमा से होने वाले पुण्य के समान फल प्राप्त होता है.

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"जल ही जीवन है" इसीलिए पानी के स्रोतों को साफ बनाए रखना बेहद जरूरी है.

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