करणी माता मंदिर से जुड़ा रहस्य जानकर हो जाएंगे हैरान
करणी माता मंदिर राजस्थान राज्य के जिला बीकानेर में स्थित देशनोक नामक कस्बे में हैं. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजपूत राजाओं ने 15वीं शताब्दी में करवाया था. इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि यहां देवी दुर्गा ने एक चारण जाति के परिवार में कन्या के रूप में जन्म लिया था. इस कन्या का नाम रिघुबाई रखा गया. किन्तु लोग इनको शुरुआत से ही माता के नाम से सम्बोधित करते थे व उनकी पूजा भी किया करते थे. उस वक्त उनकी उम्र महज़ 6 वर्ष ही थी. यही नहीं जोधपुर और बीकानेर में शासन करने वाले राठौड़ राजाओं ने भी अपने आराध्य के रूप में इनकी ही आराधना की थी. माता करणी को राजपूताना वंश की प्रमुख देवी माना जाता है. माता के अंर्तध्यान होने के पश्चात राजपूतों ने उनकी याद में अद्भुत मन्दिर का निर्माण कराया था.
करणी माता मंदिर का रहस्य
मान्यता है कि एक बार करणी माता के पुत्र की गांव के कुएं में गिरकर मृत्यु हो गयी थी. जिसके बाद उन्होंने यमराज की कठोर तपस्या कर अपने पुत्र को पुनः जीवित करने का आग्रह किया. माता की कठोर तपस्या को देखकर यमराज प्रसन्न हुए और उन्होंने माता को दर्शन दिए. व उनके पुत्र को पुनः जीवन प्रदान किया किन्तु मनुष्य योनी में नहीं बल्कि चूहा योनी में. बस तभी से मान्यता हो गयी कि माता करणी के वंशज मृत्यु के बाद चूहे के रूप में ही जन्म लेते हैं. और यही मन्दिर उनका निवास स्थान होता है. चील गिद्ध व इत्यादि शिकारी पशु-पक्षियों से चूहों की रक्षा हेतु मन्दिर प्रांगण के बाहर जाल लगाया गया है.
चूहों का रहस्य
बताया जाता है माता करणी के वंशज चूहे इसी मंदिर में निवास करते हैं. जिनका रंग बिल्कुल काला है. और मंदिर में इन चूहों की संख्या लगभग 20 हज़ार है. इस स्थान पर चूहों को कावा नाम से सम्बोधित किया जाता है. यहां चूहों की संख्या इतनी अधिक है कि यहां दर्शन करने आए श्रद्धालुओं को अपने पांव खिसखाकर ही चलना पड़ता है. अगर कोई चूहा किसी भक्त के पैरों के ऊपर से निकल जाता है तो बताया जाता है कि उस भक्त पर माता की विशेष अनुकंपा है. चूहों की वजह से ही इस मंदिर को चूहों वाला मन्दिर भी कहा जाता है.
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