टोक्यो ओलंपिक में हारी अंशु मलिक का विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतना क्यों है इतना ख़ास
'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब-खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब' भारत इस मुहावरे को तोड़कर आगे बढ़ रहा है। इसी कड़ी में एक नाम है अंशु मलिक का।
खिलाड़ियों की फैक्ट्री हरियाणा के जींद जिला के निदानी गांव की अंशु मलिक बाएं हाथ पर चोट के बावजूद विश्व रेसलिंग चैंपियनशिप के मंच पर नजर आई थी. चोट टोक्यो ओलंपिक से पहले से ही उन्हें लगी थी, जो ओलंपिक के दौरान और बढ़ गई थी। इस सब के बावजूद अंशु ने दो महीने की कड़ी ट्रेनिंग कर विश्व रेसलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का फ़ैसला किया और भारत को बता दिया कि हमारे छोरियां छोरों से कम थोड़ी हैं।
रजत पदक हासिल करके वह पहली भारतीय महिला पहलवान बनी जो फाइनल में पहुंची। साथ ही रजत पदक हासिल करने वाली लिस्ट में भी वह पहली भारतीय महिला में है।और पुरुष और महिला दोनों की जिक्र करें तो वे फ़ाइनल में पहुँचने वाली तीसरी भारतीय पहलवान हैं।
उनसे पहले यह कारनामा केवल दो पहलवान सुशील कुमार (पुरुष वर्ग) और बजरंग पुनिया (पुरुष वर्ग) ने कर दिखाया था।सेमीफ़ाइनल में जूनियर यूरोपियन चैंपियन सोलोमिया विंक को अंशु मलिक ने तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर 11-0 से हराया था।
फ़ाइनल में अंशु का भिड़ंत रियो ओलंपिक की चैंपियन और अमेरिका की हेलन मारोलिस से था। हेलन टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक भी हासिल किया था। शुरुआत में अंशु 1-0 से आगे थी, लेकिन बाद में चोट की वजह से हेलन उन पर पूरी तरह हावी हो गईं। अंशु मलिक जापान की कुश्ती की खिलाड़ी काओरी इचो के खेल से बेहद प्रभावित हैं।