कैफ़ी आज़मी के 10 चुनिंदा शेर
जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं
गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो, डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ
मैं ढूँढ़ता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता, नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था, जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना, मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए, ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बाद
इन्साँ की ख़्वाहिशों की कोई इन्तिहा नहीं, दो गज़ ज़मीं भी चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद
दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं, याद इतना भी कोई न आए
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