हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है"!

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आह जो दिल से निकाली जाएगी, क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी!

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बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है, तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता!

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इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता!

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दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं, बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीदार नहीं हूं!

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तुम बीवियों को मेम बनाते हो आजकल क्या ग़म जो हम ने मेम को बीवी बना लिया?

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सीने से लगाएं तुम्हें अरमान यही है, जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है!

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तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है, बला के पेच में आया हुआ है!

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