बशर नवाज के 10 चुनिंदा शेर
बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया, मिरे दुख से किसी आवाज़ का रिश्ता निकल आया
चाहते तो किसी पत्थर की तरह जी लेते, हम ने ख़ुद मोम की मानिंद पिघलना चाहा
आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी, एक एक पल की हम को ख़बर इस तरह न थी
आप वो स्याने रस्ते के हर पत्थर को बुत मान लिया, हम वो पागल अपनी राह में आप ही ख़ुद दीवार हुए
बहते पानी की तरह दर्द की भी शक्ल नहीं, जब भी मिलता है नया रूप हुआ करता है
किस तरह किनारों को है सीने से लगाए, ठहरे हुए पानी की अदा तुम भी तो देखो
मैं कहाँ जाऊँ कि पहचान सके कोई मुझे, अजनबी मान के चलता है मुझे घर मेरा
प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह, जागती आँखें देख रही थीं क्या क्या कारोबार हुए
अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है, दिल वो आईना कि चुप-चाप तका करता है
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