वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते, वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी!
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता, कोई एहसास तो दरिया की अना का होता!
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!
आप के बाद हर घड़ी हमने, आप के साथ ही गुज़ारी है!
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन, ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई!
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ, तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई!
तन्हाई अच्छी लगती है, सवाल तो बहुत करती पर, जवाब के लिए ज़िद नहीं करती!
खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते!
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते!