होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है, इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है!
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं!
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता।
हम भी किसी कमान से निकले थे तीर से, ये और बात है कि निशाने ख़ता हुए।
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिस को भी देखना हो कई बार देखना।
कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें, छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता।
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं, ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता।
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला, हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला।
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही, दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही।