किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते

ख़्वाब होते हैं देखने के लिए उन में जा कर मगर रहा न करो

थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ 

वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन

आ गई याद शाम ढलते ही बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो मैं डूब भी जाता तो कहीं और उभरता