China को मिलेगी कड़ी टक्कर, अमेरिका के साथ भारत ने मिलकर लिया ये बड़ा फैसला

 
China को मिलेगी कड़ी टक्कर, अमेरिका के साथ भारत ने मिलकर लिया ये बड़ा फैसला

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत कई खाड़ी देशों में जल्द भारत की बनाई ट्रेन दौड़ सकती है। इस परियोजना को लेकर अमेरिका, भारत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच एक बैठक भी हुई है। बताया जा रहा है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी इसी बैठक का हिस्सा बनने के लिए सऊदी अरब गए हैं।

बता दें कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रविवार को अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अपने समकक्षों से मुलाकात की। इस हाई लेवल मीटिंग का उद्देश्य वाइट हाउस के उस प्रस्ताव पर चर्चा करना था जिसमें भारतीय विशेषज्ञों का इस्तेमाल करते हुए पश्चिमी एशियाई देशों को रेल के माध्यम से जोड़ने की बात कही गई है।

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भारत को होंगे ये लाभ

अगर परियोजना को सफलता मिल जाती है तो इस तरह की कनेक्टिविटी कच्चे तेल की तेज आवाजाही की अनुमति देगी और लंबी अवधि में भारत की लागत को कम करेगी। कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने से भारत के उन 80 लाख लोगों को मदद मिलेगी जो खाड़ी क्षेत्र में रहते हैं और काम करते हैं।

वहीं, दूसरी वजह यह भी है कि यह परियोजना भारत को रेलवे क्षेत्र में एक बुनियादी ढांचा निर्माता के रूप में एक ब्रांड बनाने में मदद करेगी। वहीं, तीसरा लाभ यह होगा कि भारत का अपने पश्चिमी पड़ोसियों से संपर्क सीमित नहीं रहगा।

गौरतलब है, पाकिस्तान ने कई मार्गों पर रोक लगा दी है, जिसके कारण भारत का अपने पश्चिमी पड़ोसियों से संपर्क लंबे समय तक सीमित रहा है। इसलिए, देश पश्चिम एशियाई बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए शिपिंग मार्गों का उपयोग करना चाहती है।

China का प्रभाव होगा कम

गौरतलब है, खाड़ी देशों में भारतीय रेल नेटवर्क का विचार पिछले 18 महीनों में I2U2 नामक एक फोरम में बातचीत के दौरान सामने आया। इसमें अमेरिका, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और भारत शामिल हैं। I2U2 की स्थापना 2021 के अंत में मध्य पूर्व में रणनीतिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर चर्चा करने के लिए की गई थी। इस मुद्दे पर शुरुआती चर्चाओं में सीधे तौर पर शामिल एक पूर्व वरिष्ठ इजरायली अधिकारी ने एक्सियोस को बताया कि यह परियोजना सीधे तौर पर चीन से जुड़ी हुई है, लेकिन किसी ने भी उसका नाम नहीं लिया है।

बता दें कि इस बारे में सबसे पहले जानकारी अमेरिकी न्यूज वेबसाइट Axios ने दी है। वेबसाइट ने कहा कि यह मिडिल ईस्ट में अमेरिका की ओर से उठाए जाने वाले प्रमुख कदमों में से एक है क्योंकि वह इस क्षेत्र में China का प्रभाव कम करना चाहता है।

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