क्या आप जानते हैं कैसे होती है मखाने की खेती? इसे उगाना है बेहद खतरनाक
मेवा के नाम पर सबसे पहले लोगों को मखाने की याद आ जाती है क्योंकि मोती के जैसे चमकने और जीव पर रखकर गायब होने वाले मखाने सबके पसंदीदा है. हम मखाने (Makhane) जब भी बाजार से लेने जाते हैं तो हमेशा से ही ये महंगे होते हैं कभी सोचा आपने कि इस पर इतनी तेजी क्यों है. अगर नहीं तो आइए आज हम आपको बताएंगे कि आखिर मखाने पर इतनी तेजी क्यों होती है...
मखाने हम सबको देखने में तो बहुत ही अच्छे लगते हैं लेकिन इसकी खेती करना बेहद ही मुश्किल भरा काम होता है. बताया जाता है कि सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण पानी के अंदर से मखाने का बीज या गुर्मी निकालना होता है. वो इसलिए क्योंकि चार से पांच फुट गहरे पानी में नुकीले कांटों वाले पौधे से इसे तोड़ना होता है, जो कि हर किसी के बस का नहीं है. साथ ही कीचड़ में गपी गिर्री को निकालने से कई बार लोगों को नाखून भी निकल जाते हैं.
कांटों के बीच खड़ा रहता है व्यक्ति
इतना ही नहीं इसे निकालने के लिए पानी के अंदर लोगों को उतरना पड़ता है. वहीं एक दुखी 2 से 3 मिनट की होती है ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट तक अंदर आ जा सकता है लेकिन अंदर कांटों के बीच में ही खड़े रहना पड़ता है. मखाने का बीज निकालने के बाद उसकी गुर्री को लावे का रूप दिया जाता है.
बताया जाता है कि जिस जगह लावा बनाया जाता है उसका तापमान 40 से 45 डिग्री होना चाहिए. करीब 350 डिग्री पर इसे लावा बनाकर पकाने की प्रक्रिया 72 से 80 घंटे तक चलती रहती है. कारखाने में गुर्री की ग्रेडिंग छह छलनियों से होती है. इसके बाद कच्चा लोहा मिश्रित मिट्टी के छह बड़े पात्रों को चूल्हों या भट्टियों पर रखा जाता है.
फिर दोबारा इसे 72 घंटे बाद पकाया जाता है, इस दौरान ऊपर परत एकदम चटक जाती है फिर उसे हाथ में लेकर हल्की चोट की जाती है तब नर्म मखाना बाहर आता है. इस खतरनाक प्रकिया का सामना कर खेती करने वाले लोग इस मखाने को हम सब लोगों के पास पहुंचा पाते हैं. आपको बता दें कि उत्तरी बिहार में मखाने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जिसमें करीब 5 से 6 लाख लोग जुड़े हुए हैं.
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