Happy Birthday Gulzar: इस गाने ने बदल दी थी गुलजार की जिंदगी, गैराज में करते थे काम 

 
Happy Birthday Gulzar: इस गाने ने बदल दी थी गुलजार की जिंदगी, गैराज में करते थे काम 

Happy Birthday Gulzar: शब्दों के जादूगर कहे जाने वाले गुलजार आज अपना 89वां जन्मदिन मना रहे हैं। आपको बता दे की गुलज़ार साहब का जन्म पंजाब के झेलम में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। 18 अगस्त 1934 को एक सिख परिवार में जन्मे गुलज़ार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। बंटवारे के बाद वह अमृतसर में बस गए, लेकिन गुलजार को अमृतसर पसंद नहीं आया और वह मुंबई चले आए। मुंबई में गुलज़ार की किस्मत चमकी और वे एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, गीतकार, निर्माता और निर्देशक के रूप में पहचाने जाने लगे। 

ग़ज़ल-नज़्म से कुछ इस तरह प्यार हो गया

आपको बता दें कि हर लफ्ज़ में दर्द के कतरों को बयां करने वाले गुलजार को गजलों और नज्मों से इश्क कैसे हुआ, यह कहानी भी अपने आप में एक बहुत ही खास कहानी है, आपको बता दे की हु आर यू की 1947 के गदर में सब कुछ गंवाकर झेलम से हिंदुस्तान आए गुलजार जब दिल्ली पहुंचे तो उनकी पढ़ाई लिखाई एक स्कूल में शुरू हुई, उसे दौरान उर्दू के प्रति उनका लगा काफी ज्यादा था ग़ालिब से उनकी नजदीकी इस कदर बड़ी कि वह ग़ालिब और उनकी शायरी से इश्क कर बैठे गुलजार का यह इश्क बस्तुर जारी है। 

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बंटवारे का दर्द शायरी में दिखता है

सबसे खास बात यह है कि गुलजार की कलम से निकले शब्दों में बंटवारे का दर्द सबसे ज्यादा झलकता है, इसके साथ ही वह खुद को एक संस्कारी मुस्लिम भी बताते हैं, जिसका मुख्य कारण हिंदी और उर्दू का संगम है। बता दें, गुलजार की आवाज का जादू ऐसा था कि 18 साल का युवा और 80 साल का बुजुर्ग एक साथ बैठकर उनकी कविताएं सुनते थे और उनकी तारीफ भी करते थे.

सिनेमा में यूं हुई थी एंट्री

बता दें कि दिल्ली में रहने के दौरान गुलज़ार एक गैराज में काम करते थे, लेकिन वहां भी उनका ग़ज़ल नज़्म और शायरी से प्यार कम नहीं हुआ, यही कारण है कि उनकी दोस्ती दूर-दूर के जाने-माने लेखकों से हो गई, जिनमें कृष्ण चंद्र राजेंद्र सिंह भी शामिल थे। . बेदी और शैलेन्द्र भी थे शामिल शैलेन्द्र अपने समय के मशहूर गीतकार थे, जिन्होंने गुलज़ार की सिनेमा की दुनिया में एंट्री कराई। दरअसल आपको बता दें कि हुआ यूं था कि शैलेन्द्र और एसडी बर्मन के बीच विवाद हो गया था, ऐसे में शैलेन्द्र ने गुलजार से विमल राय की फिल्म बंदिनी के लिए गाने लिखने की गुजारिश की, गुलजार ने मोरा गोरा रंग लई ले गाना लिखा। जिसमें उनके लिए हिंदी सिनेमा के सारे दरवाजे खुल गए.

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