महाभारत के 'श्री कृष्ण' Nitish Bharadwaj ने Oppenheimer का किया सपोर्ट, बोले 'आप लोग इसके मैसेज को समझें'

 
महाभारत के 'श्री कृष्ण' Nitish Bharadwaj ने Oppenheimer का किया सपोर्ट, बोले 'आप लोग इसके मैसेज को समझें'

Nitish Bharadwaj On Oppenheimer: हॉलीवुड फिल्म ओपेनहाइमर (Oppenheimer) को रिलीज हुई और इस फिल्म में दुनिया भर में तहलका मचा दिया. इस फिल्म को हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर क्रिस्टोफर नोलन ने डायरेक्ट किया है. इस फिल्म में मशहूर अभिनेता सिलियन मर्फी और रॉबर्ट डॉउनी जूनियर ने अहम भूमिका निभाई है. यह फिल्म परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर की लाइफ पर आधारित है. फिल्म को दुनिया भर में बेहद पसंद किया जा रहा है वहीं हिंदुस्तान में इसके एक सीन को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है.

फिल्म के सीन को लेकर क्यों मचा बवाल

फिल्म ओपेनहाइमर में एहम भूमिका निभा रहे एक्टर सिलियन मर्फी ने इस फिल्म में एक इंटिमेट सीन दिया है और उस सीन के दौरान वह गीता का एक श्लोक पढ़ते हैं जिसे हिंदू ग्रंथों में काफी मान्यता दी जाती है. भारत में इस सीन को लेकर काफी आपत्ति जताई जा रही है और लोगों का कहना है कि यह गीता का अपमान है. इसी बीच महाभारत में श्रीकृष्ण का किरदार निभा चुके नितीश भारद्वाज (Nitish Bharadwaj) ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

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क्या बोले महाभारत के श्री कृष्ण?

रिपोर्ट के अनुसार नितीश भारद्वाज ने फिल्म के सीन को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'गीता मूल रूप से युद्ध के मैदान में अपना कर्तव्य कैसे निभाना है यह सिखाती है'. उन्होंने कहा कि 'हम जो अपनी लाइफ में स्ट्रगल करते हैं वह भी एक युद्ध के मैदान की तरह ही है. गीता के श्लोक 11.32 में श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के रूप में अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए कहा था, बुराई के विरुद्ध लड़ना था. श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं शाश्वत काल हूं, जो हर चीज को मार देगा. इसलिए हर कोई मर जाएगा भले ही आप उसे ना मारे, तो उचित यही होगा कि आप अपने कर्तव्यों का पालन करें'.

उन्होंने फिल्म के सीन को जोड़ते हुए कहा कि 'ओपेनहाइमर के द्वारा बनाए गए परमाणु का इस्तेमाल जापान की ज्यादातर आबादी को खत्म करने के लिए किया गया था. वह यह सवाल खुद से पूछ रहे थे कि क्या उन्होंने सही किया क्योंकि? उन्हें शायद पछतावा था. शायद उन्हें बाद में यह चीज महसूस हुई हो कि उनके अविष्कार से पूरी मानव जाति खत्म हो सकती है'. उन्होंने कहा कि 'फिल्म के इस सीन को भावुक मनोदशा से भी समझना चाहिए. एक वैज्ञानिक 365 दिन में 24 घंटे अपने अविष्कार के बारे में ही सोचता है. उसके माइंड में सिर्फ उसका क्रिएशन घूमता है और फिजिकल एक्ट सिर्फ एक नेचुरल मैकेनिक एक्ट है'.

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