लोकगायिका शारदा सिन्हा, Bhojpuri Music में स्वच्छता लाने की अधूरी ख्वाहिश
Bhojpuri Music: लोकगायिका शारदा सिन्हा, जो चार दशकों से मैथिली, मगही, भोजपुरी, और बज्जिका में गाए अपने गीतों के कारण पूर्वांचल की सांस्कृतिक पहचान बनी हुई थीं, का हाल ही में निधन हो गया। उनकी देशज आवाज और अनुशासित गायकी ने उन्हें एक विशेष स्थान दिया। छठ पर्व और अन्य लोक पर्वों के दौरान उनके गीतों का महत्वपूर्ण योगदान था। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी संगीत में सुधार और स्वच्छता लाने की इच्छा जताई थी, लेकिन यह सपना उनके साथ अधूरा रह गया।
भोजपुरी गीतों में स्वच्छता अभियान की इच्छा
शारदा सिन्हा का मानना था कि भोजपुरी गीतों में गुणवत्ता की आवश्यकता है। अश्लील शब्दों और द्विअर्थी अभिव्यक्तियों से उन्होंने हमेशा परहेज किया। उनका कहना था कि गीतों में सजीवता और शृंगार नग्नता के बिना भी अभिव्यक्त किए जा सकते हैं, जो श्रोताओं को संवेदनशीलता के करीब ले जा सके। वह चाहती थीं कि नई पीढ़ी को अनुशासन सिखाया जाए और सच्चे लोकगीतों का महत्व बताया जाए।
संघर्ष और साधना की कहानी
शारदा सिन्हा ने उस दौर में संगीत की दुनिया में कदम रखा, जब एक महिला का लोकगायिकी में करियर बनाना आसान नहीं था। उनका संघर्ष और अनुशासन आज के कलाकारों के लिए प्रेरणा बना। उन्हें पद्मश्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। उनकी गायकी में शुद्धता और मर्यादा बनाए रखना उनके संगीत साधना का अभिन्न हिस्सा था।
लोकगायिकी की परिपाटी और उनका योगदान
शारदा सिन्हा का योगदान केवल गीत गाने तक सीमित नहीं रहा; उन्होंने लोकगीतों को एक संगठित और अनुशासित रूप दिया। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में फैले लोकगीतों को एकत्र किया और उन्हें शास्त्रीय रूप प्रदान किया। उनके बिना, आज पूर्वांचल के लोक पर्वों में वह उत्साह और जीवंतता देखने को नहीं मिलती।
भोजपुरी संगीत में अश्लीलता पर सवाल
शारदा सिन्हा ने साफ कहा कि भोजपुरी संगीत में फैल रही अश्लीलता और नग्नता ने उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। उनका कहना था कि नग्नता के बिना भी गीतों में मनोरंजन और सजीवता लाई जा सकती है। यह केवल भोजपुरी तक सीमित नहीं है; अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी इस समस्या का सामना किया जा रहा है, लेकिन अश्लीलता कहीं भी सांस्कृतिक गरिमा को ठेस पहुंचाती है।
शारदा सिन्हा की यह अधूरी ख्वाहिश आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकती है, जो भोजपुरी संगीत में स्वच्छता और अनुशासन के महत्व को समझ सके। उनके निधन के साथ लोक संगीत की वह धारा भी थम सी गई है, जिसमें शुद्धता, संस्कृति, और अनुशासन का अद्भुत संगम था।
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