26 अक्टूबर 1947: आज ही के दिन कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, क्यों कभी पूरा क्यों नहीं हो सका ये विलय?
इस लेख के लेखक देश के बड़े पत्रकार राहुल कोटियाल सर है।
‘मैं सोने जा रहा हूं। कल सुबह अगर तुम्हें श्रीनगर के आसमान में भारतीय सैनिक विमानों की आवाज़ सुनाई न दे, तो मुझे नींद में ही गोली मार देना।’ यह बात आज से ठीक 74 साल पहले, 26 अक्टूबर 1947 की रात जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने अपने अंगरक्षक कप्तान दीवान सिंह से कही थी।
हरि सिंह ने इस बयान के कुछ देर पहले ही कश्मीर के भारत में विलय का फैसला लिया था साथ ही ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इस हस्ताक्षर के साथ ही कश्मीर अब भारत का हिस्सा बन चुका था।
अब एक सवाल जो आज भी जिंदा है कि 27 अक्टूबर 1947 को जब भारत ने कश्मीर के साथ हुए ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ को स्वीकार कर लिया था तो क्यों कश्मीर आज भी एक विवाद बना हुआ है? इसके साथ एक सवाल और भी था कि ऐसी क्या परिस्थितियां थी जिनके चलते महाराजा हरी सिंह कश्मीर की आजाद रहने की जिद्द छोड़कर ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करने को तैयार हो गए थे?
इस सवाल को जानने के लिए कश्मीर के इतिहास और भूगोल की तरफ रूख करते है:
जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगिट और बाल्टिस्तान। इन पांच भागों में विभाजित था जम्मू-कश्मीर। इन सभी इलाकों को एक सूत्र में बांध कर एक राज्य बनाने का श्रेय डोगरा राजपूतों को जाता है। 1830 में लद्दाख पर जीत हासिल करने के बाद सदी के अंत तक वे गिलगिट तक कब्ज़ा कर चुके थे।
अफगानिस्तान, चीन और तिब्बत को छूती हुई कश्मीर एक ऐसा विशाल राज्य बन गया। फिर 1925 के दौर में जब हरी सिंह राजा हुआ करते थे। कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में राजशाही के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं।
साल 1932 में उन्होंने ‘ऑल जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कॉफ्रेंस’ का गठन किया। जिसकी मुख्य मांग थी- लोकतंत्र लाना।
1940 आते-आते शेख जवाहरलाल नेहरु के भी करीब आ गये और घाटी के सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे।
आजादी से पहले यह साफ हो गया था कि अंग्रेज अब भारत छोड़ने ही वाले हैं। तब लार्ड माउंटबेटन और खुद महात्मा गांधी कश्मीर गए और महाराजा हरी सिंह को भारत में विलय के लिए राजी होने को कहा, लेकिन ये सभी प्रयास निरर्थक रहे।
फिर 15 अगस्त को देश आज़ाद हो गया। कश्मीर अब भी आजाद था। भारत ने फिलहाल इंतज़ार करना ही मुनासिब समझा। तभी पाकिस्तान ने हिंदू बाहुल्य मुस्लिम शासित राज्य जूनागढ़ के खुद में विलय को स्वीकार कर लिया। फिर सरदार पटेल कश्मीर को भारत में विलय कराने की तैयारी करने लगे।
इस बीच पाकिस्तान के हजारों हथियारबंद लोग कश्मीर में दाखिल देने के लिए बेताब थे। फिर लार्ड माउंटबेटन के सलाह पर हरी सिंह से ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर कर दिया। अगली सुबह भारतीय फ़ौज कश्मीर के लिए रवाना हुई और कुछ ही दिनों में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों और विद्रोहियों को खदेड़ दिया।
जानकारी जो कम लोगों को पता है:
भारत ने कश्मीर के राजा हरी सिंह के साथ जो ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ साइन किया था, वह अन्य रियासतों से अलग नहीं बल्कि अक्षरशः वैसा ही था जैसा मैसूर, टिहरी गढ़वाल या किसी भी अन्य रियासत के साथ साइन किया गया था। श लेकिन जहां बाकी रियासतों के साथ बाद में ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ मर्जर’ साइन किये गए, वहीँ कश्मीर के साथ भारत के संबंध उलझते चले गए।
इसलिए जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राज्य का विभाजन इस तरह से हो कि जम्मू के साथ कश्मीर घाटी भी भारत में रहे जबकि पुंछ और उसके बाद का इलाका पाकिस्तान को दे दिया जाए।
कश्मीर की समस्या आज से 74 साल पहले, 26 अक्टूबर 1947 की रात महाराजा हरी सिंह की इस चिंता से शुरू हुई थी कि ‘जाने अगली सुबह भारतीय फ़ौज कश्मीर आएगी या नहीं’….. अब 74 साल बाद यह समस्या स्थानीय लोगों की इस चिंता में बदल चुकी है कि ‘जाने भारतीय फ़ौज कभी कश्मीर से जाएगी या नहीं….