डेढ़ साल बाद इस मुस्लिम देश में हिंदुओं पर हुए हमले के बीच सीएए पर क्यों तेज़ हो गई है चर्चा?

 
डेढ़ साल बाद इस मुस्लिम देश में हिंदुओं पर हुए हमले के बीच सीएए पर क्यों तेज़ हो गई है चर्चा?

सीएए एक वक्त भारत की राजनीति इसी शब्द पर टिक चुकी थी। जैसे आजकल किसान आंदोलन पर टिकी हुई है। लेकिन राजनीति सिर्फ वर्तमान परिदृश्य को संभालने के लिए की जाती है इसलिए सीएए का मामला ठंडा हो गया।लेकिन इन सबके बीच एक बार फिर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के बाद लगभग डेढ़ साल बाद एक बार फिर नागरिकता कानून को लेकर बहस तेज़ हो गई है।

दिसंबर, 2019 में भारत की संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम मतलब सीएए पास किया था जिसके तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और बौद्धों को भारत में नागरिकता देने का प्रवधान किया गया।

कानून को मुसलमान विरोधी और असंवैधानिक बताते हुए विरोधी पार्टियों और कई सारे संस्थानों के द्वारा देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। सौ दिनों से अधिक समय इस कानून के विरोध में शाहीन बाग में महिलाओं ने सड़क पर बैठकर अपना विरोध दर्ज कराया था। हालांकि कोरोना के कारण लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने पूरे विरोध प्रदर्शन को ख़त्म कर दिया।

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अब लगभग डेढ़ साल बाद एक बार फिर नागरिकता कानून को लेकर बहस तेज़ हो गई है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मिलिंद देवड़ा ने ट्वीट किया कि बांग्लादेश में हालात 'परेशान' करने वाले हैं। उन्होंने लिखा, "बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा परेशान करने वाली है, धार्मिक उत्पीड़न के कारण जान बचाकर भाग रहे बांग्लादेशी हिंदुओं की रक्षा और पुनर्वास के लिए सीएए में संशोधन किया जाना चाहिए। साथ ही बांग्लादेशी इस्लामवादियों के साथ भारतीय मुसलमानों की तुलना के किसी भी सांप्रदायिक प्रयास को ख़ारिज करना चाहिए।"

https://youtu.be/jCY3lrAYblk

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