Bhagat Singh को विसारत में मिली थी देशभक्ति, 23 साल की उम्र में किए थे ये क्रातिंकारी काम

 
Bhagat Singh को विसारत में मिली थी देशभक्ति, 23 साल की उम्र में किए थे ये क्रातिंकारी काम

23 साल की उम्र में सभी अपने कैरियर को बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करते रहते हैं. इस समय में सभी बस खुद के लिए सोचते हैं कि वे अपने जीवन में तरक्की कैसे करें, लेकिन आज हम आपको उनके बारे में बताने जा रहे हैं जिनके लिए इस युवा उम्र में देश भक्ति से बढ़कर कुछ नहीं था. हम बात कर रहे हैं भगत सिंह (Bhagat Singh) के बारे में जिन्होनें सिर्फ 23 साल की उम्र में खुद को देश के लिए कुर्बान कर दिया. उनकी देश भक्ति की धड़कन आज भी भारत के सीने में धड़कती है.

भगत सिंह का जन्म लायलपुर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान की सरहद के उस पार शामिल हो चुका है. 27 और 28 सितंबर को उनकी जयंती मनाई जाती है. वह एक महान क्रांतिकारी थे, उन्होनें देश की आज़ादी के लिए अपनी जान की परवा किए बिना अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया था. मानिए के इस नौजवान को देशभक्ति विरासत में मिली थी. उनके दादा अर्जुन सिंह, उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह गदर पार्टी के अभिन्न हिस्से थे. उन्हें देखकर भगत सिंह की देशभक्त भी जाग चुकी थी.

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शादी करने को लेकर भगत सिहं ने दिया था ये जबाव

आपको बता दें कि उस समय में बच्चों की शादी सिर्फ 12 से 14 साल की उम्र में करा दी जाती थी और जब इस विषय पर उनकी मां ने उनसे बात कही तो भगत सिंह का जवाब था कि इस गुलाम भारत में मेरी दुल्हन बनने का अधिकार सिर्फ मेरी मौत को है, जिसके बाद भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएश में शामिल हो गए. आज भले ही भगत सिंह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी सोच उनकी कट्टर देशभक्ति आज भी लोगों के ज़हन में ज़िंदा है.

3 अप्रैल 1919 को जब जलियावाला बाग में हत्याकांड हुआ था जिसे देखकर भगत सिंह बहुत पीड़ित हुए और सरेआम कत्लेआम देखकर भगत सिंह ने पढ़ाई छोड़कर सिर्फ देश की आज़ादी में योगदान देने की ठानी, जिसके बाद वह आजादी की लड़ाई में बिना कुछ सोचे कूद पड़े. भगत सिंह आज़ादी की लड़ाई शामिल होना सभी के लिए एक फक्र की बात थी. क्योंकि कम उम्र में ही इतना बड़ा कदम उठाने की बात हर किसी के बस्की बात नहीं थी.

ऐसे हुए थे शहीद

अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए और फिर 23 मार्च 1931 को अपने क्रांतिकारी साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका था. अंग्रेजों के बीच घुसकर ये काम करना सबके बस के बात नहीं थी, लेकिन इस हमले के लिए अंग्रेजों ने उनसे उनकी जान ही मांग ली. जी हां अंग्रजों ने राजगुरु और सुखदेव के साथ भगत सिंह को भी फांसी दे दी और सिर्फ 23 साल की उम्र में वह भारत के लिए शहीद कह लाए.

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