बिहार उपचुनाव: कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने से क्या फर्क पड़ा?
बिहार के दो विधानसभा क्षेत्रों क्रमशः कुशेश्वरस्थान और तारापुर में विधानसभा चुनाव का परिणाम आया है। परिणाम लगभग वैसा ही है जैसा अनुमान किया जा रहा था। अब भले ही तेजस्वी ये कहें कि ये दोनों सीट जदयू की थीं, राजद यहां हार कर कुछ भी नहीं गंवाया है।
मगर जिस प्रकार बीमारी की हालत में भी उन्होंने अपने पिता को चुनाव प्रचार के लिए उतारने में संकोच नहीं किया, लगातार रैलियां की। वह दर्शाता है कि वह इस चुनाव में जीत के लिए किस हद तक जुटे थे। इसके बावजूद उनकी पार्टी का दोनों ही सीटें गंवा देना लंबे समय तक उन्हें टीस देता रहेगा।
अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि कॉन्ग्रेस का क्या हुआ? कन्हैया के आने से कांग्रेस में क्या बदलाव हुआ?
राजद से अलग होकर कांग्रेस को लड़ना बहुत भारी पड़ गया। हालांकि कांग्रेस का साथ छोड़ना आरजेडी को भी नुकसान उठाना पड़ा। काँग्रेस की परंपरागत सीट समझी जाने वाली कुशेश्वरस्थान सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को केवल 5602 वोट ही प्राप्त हुआ। वही तारापुर सीट से नोटा से अधिक वोट हुआ।
वही पूरे चुनाव में चिराग पासवान की बात की जाए तो दोतरफा चुनाव में कन्हैया की कांग्रेस को पछाड़कर तीसरा स्थान हासिल करना जीत से कम नहीं है। चिराग ने अपने दम पर पांच हजार वोट जुटाए हैं। एक वक्त होगा जब चिराग बिहार में किसी भी नेता से अधिक प्रभावशाली होंगे।
इस सबके बावजूद भी बिहार प्रभारी और काँग्रेस प्रमुख को हार का कारण समझ नहीं आरहा है तब इनलोगों को "भकचोंहर" बोलने में कोई हर्ज़ नहीं है।