जाति के वजह से नीचे बैठकर चाय पीते हैं भाजपा के सांसद, बड़े गर्व से इसे परंपरा मानते हैं
यह हाथरस से भाजपा के सांसद राजवीर दिलेर है जो डिस्पोसिबल ग्लास में नीचे बैठकर चाय पी रहे हैं। इनके पिता किशन लाल दिलेर भी भाजपा से सांसद थे।
यह अपने चुनाव प्रचार में जब किसी के घर ( दलित के अलावा किसी के भी घर ) वोट माँगने जाते हैं तो अपना बर्तन या डिस्पोसिबल ग्लास साथ रखते हैं और नीचे बैठकर वहाँ पर अपने साथ लाए बर्तन में कुछ खाते या पीते हैं और बड़े गर्व से बताते हैं कि यह परम्परा है ।
आपको याद ही होगा कि अभी कुछ समय पहले हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की से बलात्कार हुआ था और बाद में उसकी चिता को प्रशासन ने ज़बर्दस्ती जला दिया था । उस केस से पूरा देश हिल गया था। लगभग सभी विपक्षी नेता हाथरस की पीड़िता के साथ खड़े थे। प्रियंका गांधी - राहुल गांधी के साथ प्रशासन ने बदसलूकी की थी , जयंत चौधरी के ऊपर लाठीचार्ज हुआ था।
उनके कार्यकर्ता लाठियों को अपने ऊपर ना लेते तो जयंत चौधरी बुरी तरह चोटिल होते , चंद्रशेखर रावण को वहाँ पर कुछ गुंडो ने घेरने की कोशिश की थी। सिद्दीक़ कप्पन उसी केस की रिपोर्टिंग करने आ रहे थे और आज तक जेल में बंद है। उस केस में बाल्मीकी समाज के स्थानीय सांसद राजवीर दिलेर ने क्या किया था ?? राजवीर दिलेर पीड़ित परिवार पर दबाव बना रहे थे कि वो लोग कुछ पैसे लेकर शांत हो जाए और बलात्कार के आरोपियों से समझौता कर ले।
राजवीर दिलेर और पीड़ित दोनो बाल्मीकी समाज से है , फिर भी सांसद महोदय को उनकी तकलीफ़ का एहसास नहीं हुआ , क्यों ?? क्योंकि सांसद महोदय की विचारधारा उन्हें इस तकलीफ़ का एहसास होने की इजाज़त नहीं देती। जब आरक्षित सीट से जीतने के बाद भी और पुराने राजनीतिक घर से होने के बाद भी सांसद महोदय आरक्षण का उद्देश्य नहीं समझ पाये , खुद को समानता का सम्मान नहीं दिला पाए तो अपने समाज के गरीब पीड़ित परिवार को कहाँ से न्याय दिला पाते?अगर राजवीर दिलेर भाजपा के अलावा किसी और पार्टी के सांसद होते तो क्या वो हाथरस के केस में ऐसे सरेंडर कर देते?
बात व्यक्ति की नहीं विचारधारा की है। व्यक्ति कोई भी हो , अगर उसकी विचारधारा ठीक नहीं है तो वो ना अपने सम्मान के साथ न्याय कर पाएगा और ना अपने समाज को न्याय दिला पाएगा , आप चाहे उसे कितने भी ऊँचे पद पर बैठा दीजिए। अगर व्यक्ति सही विचारधारा से जुड़ा है तो फिर चाहे वो ब्राह्मण हो , ठाकुर हो , ओबीसी हो , अल्पसंख्यक हो या दलित हो , वो अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ ज़रूर उठाएगा।
हाथरस कांड इस का गवाह है ।