Chhath puja: जब छठ की वजह से आमने-सामने हुए थे लालू यादव और राज ठाकरे
बिहार में जब भी समाजवाद का जिक्र होगा तब लालू प्रसाद यादव का जिक्र जरूर होगा। वहीं लालू प्रसाद यादव छट पर्व को समतावादी एवं समाजवादी सोच का प्रतीक मानते हैं। क्योंकि इस पर्व में किसी पंडित या पुरोहित की आवश्यकता नहीं होती है।
इस पर्व में इस्तेमाल होने वाली प्रत्येक सामग्री हर वर्ग और जाति के लोग आसानी से उपलब्ध कर सकते हैं। छठ पर्व में लोक गीतों का गायन होता है। मूर्ति पूजा नहीं होने के वजह से कई जगहों पर मुस्लिम भी व्रत रखते हैं।
इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत जो हमारे बिहार को खासम-खास बनाती है कि पूरे भारत में उगते सूरज की पूजा होती है, हमारे यहां डूबते सूरज की भी पूजा होती है।
2009 ई० में राज ठाकरे ने बिहारियों के विरोध के वक्त छठ पर बेतुका बयान दिया था। ठाकरे ने कहा कि, "मुंबई में बिहारियों को इतने बड़े पैमाने पर यह त्योहार नहीं मनाना चाहिए।" राज ठाकरे की बिहार के प्रति नफरत किसी से अछूती नहीं है।
तब लालू प्रसाद यादव ने प्रत्युत्तर में कहा कि मैं मुंबई जाकर छठ करूँगा। बस फिर क्या था,फिर जहां-जहां बिहारी प्रवासी थे,छठ करने लगे। वो भी हुजूर शान और सम्मान से। लालू की आवाज पूरे बिहार की आवाज थी और छठ बिहारी पहचान का प्रतीक था।