दिल्ली सरकार ने अध्यादेश से प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर रोक लगाने का लिया फैसला

 
दिल्ली सरकार ने अध्यादेश से प्राइवेट स्कूलों की फीस पर रोक लगाने का लिया फैसला

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने एक अहम कदम उठाते हुए प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर रोक लगाने का फैसला लिया है। यह निर्णय मंगलवार को कैबिनेट बैठक में पास किया गया है और यह 1 अप्रैल 2025 से लागू होगा। इस फैसले से दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई कर रहे बच्चों के माता-पिता को राहत मिलेगी।

कैबिनेट बैठक में लिया गया महत्वपूर्ण निर्णय

दिल्ली सरकार की कैबिनेट की आठवीं बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। बैठक की अध्यक्षता दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने की। बैठक के दौरान एक अहम फैसला लिया गया, जिसमें प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए फीस वृद्धि पर रोक लगाने के लिए एक बिल पास किया गया। दिल्ली सरकार के मंत्री आशीष सूद ने बताया कि सरकार इस बिल को अध्यादेश के तहत लागू करेगी।

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नई विधेयक से मिलेगा अभिभावकों को फायदा

कैबिनेट ने दिल्ली स्कूल शिक्षा (शुल्क निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025 पास किया है। इस बिल को एलजी (लेफ्टिनेंट गवर्नर) और फिर राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। उनके द्वारा मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। सरकार का मानना है कि यह कानून दिल्ली के अभिभावकों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा और प्राइवेट स्कूलों द्वारा फीस में मनमानी वृद्धि पर रोक लगाएगा।

प्राइवेट स्कूलों में हर साल बढ़ रही फीस

आपको बता दें कि प्राइवेट स्कूलों में हर साल अप्रैल में फीस में 10% से 40% तक की बढ़ोतरी देखी जाती है। हाल ही में LocalCircles द्वारा किए गए एक सर्वे में देशभर के 31,000 पैरंट्स से सवाल पूछा गया। इस सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। सर्वे में शामिल 44% माता-पिता ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में स्कूल फीस में 50% से 80% तक की वृद्धि हुई है, जबकि 8% ने कहा कि उनके बच्चों की फीस में 80% या उससे ज्यादा इजाफा हुआ है।

सरकार को इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने की जरूरत

सर्वे में 93% लोगों ने यह माना कि सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है, जिससे स्कूलों को मनमानी करने की खुली छूट मिल रही है। असल में, स्कूलों के पास अत्यधिक अधिकार हैं, और जिनके बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं, उनके पास बहुत कम विकल्प होते हैं। अभिभावकों को स्कूलों की फीस की मांग समझ नहीं आती और जब वे सवाल उठाते हैं, तो बच्चों को निशाना बनाया जाता है।

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