घटती आमदनी और एलपीजी की बढ़ती कीमतों के बाद भी बिहार के इस गाँव में गरीब परिवारों को गोबर के बदले मिल रहा गैस सिलेंडर

 
घटती आमदनी और एलपीजी की बढ़ती कीमतों के बाद भी बिहार के इस गाँव में गरीब परिवारों को गोबर के बदले मिल रहा गैस सिलेंडर

देश में उज्वला योजना के लाभार्थी परिवारों ने एक बार तो सिलेंडर का उपयोग कर लिया लेकिन उनके सामने दूसरी बार सिलेंडर भराने के लिए पैसों की तंगी बनी हुई है। ऐसे वक्त में बिहार के मधुबनी जिले के सुखैत गांव में महिलाओं को 1200 किलो गोबर और कचरा देने पर गैस सिलेंडर दिया जाता है। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस गांव में चल रहे योजना की काफी तारीफ की थीं।

गांव की रेखा देवी, रानी देवी, लालू देवी, मुन्नी देवी, ललिता देवी, सिंदूर देवी पहले जिस गोबर और कचरे को फेंक देती थीं या गोबर के उपले एवं जलावन से खाना बनाती थीं। आज उन्हें पायलट प्रोजेक्ट के तहत गोबर देने के बदले गैस सिलेंडर मिलता है।

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सुखैत गांव के किसान सुनील यादव सबसे पहले इस योजना से जुड़े थे। सुनील बताते हैं कि, "इस गांव में करीब 104 परिवार हैं। इसमें ज्यादातर यादव, मुसलमान जाति के लोगों का निवास है। गांव के अधिकांश गरीब परिवारों को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेेंडर व चूल्हा नि:शुल्क मिला था। इन परिवारों ने एक बार तो सिलेंडर का उपयोग कर लिया, लेकिन हर दूसरे महीनें फिर से सिलेंडर के पूरे पैसे इकट्ठा करना एक बड़ी समस्या रहती थीं।"

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"लेकिन यूनिवर्सिटी योजना से जुड़ने के साथ ही हमलोगों की जिंदगी में कई बदलाव महसूस होने लगे हैं। गोबर के बदल में दो महीने में गैस सिलेंडर मिल रहा है। अब खाना बनाना आसान हो गया है। इस योजना में अब तक कुल 56 परिवार जुड़ गए हैं।" आगे सुनील यादव बताते हैं।

घटती आमदनी और एलपीजी की बढ़ती कीमतों के बाद भी बिहार के इस गाँव में गरीब परिवारों को गोबर के बदले मिल रहा गैस सिलेंडर

क्या है सुखेत मॉडल?

वरिष्ठ भूमि वैज्ञानिक डॉक्टर शंकर झा बताते हैं कि, "कुलपति के निर्देश पर हमने पहले गांव के कुछ किसानों को इस योजना से जोड़ा। जिसके तहत उन किसानों को प्रतिदिन 20 से 25 किलो गोबर और घर से निकलने वाले कचड़े को देना होता है। 60 फीसदी गोबर और 40 फीसदी वेस्ट मेटेरियल के साथ मिलावट के बाद गोबर और कचड़े से कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। मछधी गांव के गोबर से 500 टन जैविक खाद बनाने की योजना है, लेकिन पहले चरण में सिर्फ 250 टन बनाने की योजना पर काम चल रहा है। इसकी बिक्री छह रुपये प्रतिकिलो की जाएगी।"

"दरअसल स्वच्छता मिशन अभियान और उज्जवला योजना को ध्यान में रखते हुए ही 4 फरवरी 2021 को इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था। जल्द ही यह बिहार के सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली व पटना जिलों के गाँवों में भी शुरू किया जाएगा।" आगे झा जी बताते हैं।

सूचना पदाधिकारी डॉ. कुमार राज्यवर्धन बताते हैं कि,
"स्मोकलेस रूरल सेनिटाइजेशन प्रोग्राम के तहत अभी तक 104 परिवारों में से 56 परिवार जुड़ गए हैं। बाकी को भी जल्द ही जोड़ लिया जाएगा। जिनकों जोड़कर 500 टन वर्मी कम्पोस्ट बनाने का लक्ष्य हैं। किसानों को ऑर्गेनिक फसल उपजाने से लाखों की बचत होगी और उनकों रोजगार भी मिल जाएगा। 5 साल बाद इन्हीं गांव वालों को ही यूनिवर्सिटी यह प्रोजेक्ट सुपुर्द कर देगी।"

गैस सिलेंडर के साथ-साथ रोजगार भी मिल रहा हैं

इस योजना से जुड़े प्रवीण मंडल बताते हैं कि, "गांव को गंदगी से मुक्ति मिल रही है, गैस पर खाना बनाने से गांव की महिलाओं को धूएं से निजात मिल रही हैं और किसानों को वर्मी कम्पोस्ट मिल रहा है। साथ ही इस योजना से गांव के 14-15 लोगों को रोजगार भी मिला हैं।"

51 वर्षीय ललिता देवी बताती हैं कि, "मेरे पास तीन मवेशी हैं। जिसका उपयोग पहले खेत में खाद के रूप में और जलावन बनाने में करते थे। अब इस गोबर के बदल में दो महीने में गैस सिलेंडर मिल रहा है। अब खाना बनाना आसान हो गया है।"

बांकी पूरे बिहार की स्थिति क्या हैं

उज्ज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिला को फ्री गैस कनेक्शन दिया जाता है। बिहार में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या 2 करोड़ 74 लाख के लगभग हैं। मतलब बिहार में लगभग 35% प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं।

जबकि उज्ज्वला योजना 1.0 तहत बिहार में सिर्फ 87 लाख कनेक्शन उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को दिया जा चुका हैं। वहीं उज्ज्वला योजना 2.0 के तहत पूरे देश में एक करोड़ कनेक्शन देने का लक्ष्य हैं।

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