Dussehra 2023: विजयादशमी वाले दिन बिना मुहूर्त करें कई शुभ काम, जानें पूजा विधि और मुहूर्त

Dussehra 2023: विजयादशमी जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, यह त्योहार आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विजय दशमी का त्योहार हर साल शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन मनाया जाता है। इस बार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 24 अक्टूबर 2023 को है। दुर्गा पूजा के 10वें दिन मनाई जाने वाली विजयादशमी असत्य, अहंकार, अत्याचार और बुराई पर सत्य, धर्म और अच्छाई की जीत का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने अधर्म, अत्याचार और अन्याय के प्रतीक रावण का वध किया था। इसके अलावा देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके धर्म और सत्य की रक्षा की थी। इस दिन भगवान श्री राम, दुर्गाजी, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और हनुमान जी की पूजा की जाती है और सभी के लिए आशीर्वाद की कामना की जाती है। सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विजयादशमी के दिन रामचरित मानस आदि का पाठ करना शुभ माना जाता है। विजयादशमी का पर्व अबूझ मुहूर्त माना जाता है, अर्थात इस पर्व पर सभी प्रकार के शुभ कार्य बिना शुभ मुहूर्त देखे किए जा सकते हैं।
दशहरे पर करें शमी के पौधे की पूजा
दशहरे पर विशेष रूप से शमी के पौधे की पूजा करने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत में पांडवों ने अपने हथियार शमी के पेड़ पर छुपाए थे, जिसके बाद उन्होंने कौरवों पर युद्ध जीता था। इस दिन घर की पूर्व दिशा में शमी की एक शाखा रखकर उसकी विधिवत पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा करने से शनि के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है।
विजयादशमी पर पान खाने का महत्व
विजयादशमी के दिन पान खाना और खिलाना सम्मान, प्रेम और विजय का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद का दहन करने के बाद पान खाना सत्य की जीत की खुशी व्यक्त करता है। इस दिन हनुमानजी को मीठी बूंदी का भोग लगाने के बाद उन्हें पान का बीड़ा चढ़ाकर उनका आशीर्वाद लेना जरूरी है।
नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ होता है।
नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन और भगवान शिव से शुभ फल की प्रार्थना करने से जीवन में सौभाग्य, धन और खुशियां आती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने लंका के राजा रावण पर विजय पाने की इच्छा से सबसे पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन किये थे।