बीके अस्पताल में फर्जी डॉक्टर का पर्दाफाश, 55 लोगों का इलाज और तीन की मौत

फरीदाबाद के बीके अस्पताल स्थित हार्ट सेंटर में एक दिलचस्प मामला सामने आया है, जिसमें एक एमबीबीएस डॉक्टर ने अपने हमनाम डॉक्टर का नाम इस्तेमाल कर हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) की नौकरी पा ली। आरोपी डॉक्टर ने 55 लोगों की एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की। यह घटना बीके अस्पताल के हार्ट सेंटर में हुई। इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब मरीजों ने असली डॉक्टर से मिलकर मामले को उजागर किया।
मामले का खुलासा कैसे हुआ?
एडवोकेट संजय गुप्ता ने बताया कि बीके अस्पताल के हार्ट सेंटर में इलाज करा रहे एक मरीज को जब असली डॉ. पंकज मोहन से मुलाकात हुई, तो यह राज सामने आया कि एक अन्य व्यक्ति ने उनका नाम इस्तेमाल किया था। यह घटना 22 नवंबर को हुई थी जब फर्जी डॉक्टर छुट्टी पर थे और हार्ट सेंटर के कर्मचारियों ने मरीज को बताया था कि वे गांधी कॉलोनी में क्लिनिक चलाते हैं।
संबंधित अधिकारियों की लापरवाही
यह मामला और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि हरियाणा सरकार के अनुसार किसी भी डॉक्टर की नियुक्ति से पहले वेरिफिकेशन की प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन डॉ. पंकज मोहन शर्मा की नियुक्ति के समय वेरिफिकेशन नहीं किया गया। इसके अलावा, आरोप है कि इस फर्जी डॉक्टर ने बीपीएल, आरक्षित श्रेणी और आयुष्मान योजना के तहत भी धोखाधड़ी की और प्रदेश सरकार को झूठे बिल लगाए।
तीन मरीजों की मौत का आरोप
इस फर्जी डॉक्टर द्वारा की गई इलाज के कारण बीके अस्पताल के हार्ट सेंटर में तीन मरीजों की मौत होने की जानकारी भी सामने आई है। एडवोकेट संजय गुप्ता ने इस मामले की शिकायत पहले थाना एसजीएम नगर में दी थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसके बाद उन्होंने सीएम विंडो और गृह मंत्रालय से भी शिकायत की है।
पुलिस और अस्पताल की प्रतिक्रिया
सीएमओ डॉ. जयंत आहूजा ने पुष्टि करते हुए कहा कि इस मामले की जांच एसीबी (एंटी करप्शन ब्रांच) द्वारा की जा रही है, और फिलहाल कार्रवाई करना उचित नहीं समझा गया। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, डॉ. पंकज मोहन की नियुक्ति जुलाई 2024 में हुई थी और फरवरी 2025 तक उनका कार्यकाल था। उनके नाम पर प्रदेश सरकार से धोखाधड़ी करने के आरोप भी लग रहे हैं।
हार्ट सेंटर बंद किया गया
मेडिट्रीना अस्पताल के मुख्य प्रबंध निदेशक डॉ. एन प्रताप ने कहा कि बीके अस्पताल में चल रहे हार्ट सेंटर को अब बंद कर दिया गया है। उन्होंने स्वीकार किया कि नियुक्ति के समय डॉक्टर का वेरिफिकेशन कार्य एचआर विभाग का था, जिसे पूरा नहीं किया गया था। इस मामले के सामने आने के बाद, आरोपी डॉक्टर को अस्पताल से हटा दिया गया है।