Supreme Court: क्या रकार समाज के लिए आपकी जमीन ले सकती है? जानिए 9 जजों की बेंच का अहम फैसला
Supreme Court: भारत में यह बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार किसी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति को समाज की भलाई के लिए अपने नियंत्रण में ले सकती है। यह विवाद दशकों पुराना है और अब इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में 9 जजों की बेंच सुनवाई कर रही है।
500 सालों बाद की डील
सुप्रीम कोर्ट के इस मामले का महत्व इस कारण और भी बढ़ गया है क्योंकि यह सामाजिक न्याय और निजी संपत्ति के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। 10 नवंबर को चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के रिटायर होने से पहले इस फैसले की उम्मीद है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इस विवाद की जड़ अनुच्छेद 39B में है, जिसे नीति निर्देशक तत्वों के तहत रखा गया है। हालांकि, इस अनुच्छेद को लागू करना सरकार के लिए अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद, इसके तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह निजी संपत्तियों को सार्वजनिक भलाई के लिए अधिग्रहित कर सके।
1977 का महत्वपूर्ण फैसला
1977 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था जिसमें यह कहा गया था कि निजी संपत्ति को 'समुदाय का संसाधन' नहीं माना जा सकता। जस्टिस कृष्णा अय्यर का अल्पमत का फैसला इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने निजी संपत्तियों को भी समाज का हिस्सा माना।
1983 और 1996 में आए फैसले
1983 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के राष्ट्रीयकरण को जायज ठहराया। 1996 में एक अन्य मामले में भी इसी धारणा को स्वीकार किया गया था।
मौजूदा विवाद की पृष्ठभूमि
वर्तमान में, यह मामला महाराष्ट्र सरकार के 1976 के कानून और उसके संशोधनों से संबंधित है, जिसमें सरकार को कुछ संपत्तियों का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया गया है।
क्या हो रहा है अब?
इस समय सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या निजी संपत्तियों को सार्वजनिक संपत्ति में तब्दील किया जा सकता है। इस पर कई जजों ने पहले ही सुनवाई कर ली है।