Gyanvapi Mosque Case: वाराणसी कोर्ट ने दी ASI सर्वे की अनुमति, जानें क्या है ज्ञानवापी विवाद ?

 
Gyanvapi Mosque Case: वाराणसी कोर्ट ने दी ASI सर्वे की अनुमति, जानें क्या है ज्ञानवापी विवाद ?

Gyanvapi Mosque Case:  ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वैज्ञानिक जांच को लेकर दायर याचिका पर वाराणसी कोर्ट का फैसला आ गया है। कोर्ट ने ज्ञानवापी के सर्वे का आदेश दे दिया है। हालांकि, उन स्थानों का सर्वे नहीं कराया जाएगा जिनको पहले से ही सील किया गया है। हिंदू पक्ष द्वारा याचिका दायर कर मांग की गई थी कि पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की ASI द्वारा साइंटिफिक सर्वे कराई जाए।

हिंदू पक्ष की ओर से वाराणसी कोर्ट में याचिका लगाई

याचिका में कहा हया इसमें गुहार लगाई गई है कि विवादित वजुखाना क्षेत्र को छोड़कर पूरे ज्ञानवापी परिसर का ASI सर्वे कराया जाए। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि ASI सर्वे के लिए 16 मई को वाराणसी जिला कोर्ट में आवेदन दिया गया था।

14 जुलाई को कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला

विष्णु शंकर जैन ने बताया कि ASI सर्वे को लेकर दायर याचिका पर 12 और 14 जुलाई को सुनवाई हुई थी। 14 जुलाई को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट इस पर अपना फैसला सुनाएगी कि विवादित ढांचे को छोड़कर शेष क्षेत्र का सर्वेक्षण एएसआई द्वारा किया जाना चाहिए या नहीं। हमें उम्मीद है कि फैसला हमारे पक्ष में होगा। एएसआई ही एकमात्र संस्था है जो ज्ञानवापी के बारे में सच्चाई बता सकती है।

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क्या होती है कार्बन डेटिंग

  • कार्बन डेटिंग वो वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया है, जिसके जरिए 50,000 साल पुराने अवशेष का पता लगाया जा सकता है। वाराणसी में ये मांग करने वाले कम नहीं कि ज्ञानवापी से मिली आकृति की कार्बन डेटिंग से पहले कला वास्तु विशेषज्ञों की कमेटी से जांच करानी चाहिए.
  • कार्बन डेटिंग को रेडिया कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है।
  • किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी चीज की आयु ये पुख्ता तौर पर बता देती है लेकिन ऐसा नहीं है, ये भी उसकी अनुमानित आयु बताता है।
  •  माना जाता है कि हर पुरानी चीज पर समय के साथ कार्बन के तीन आइसोटोप आ जाते हैं।
  • जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होते हैं। ये कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 हैं। कार्बन-14 के जरिए ही डेटिंग विधि को काम में लाया जाता है।

कार्बन डेटिंग में निर्धारण कैसे होता है?

कार्बन-14 द्वारा कालनिर्धारण की विधि का प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है. इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। वैज्ञानिक निष्कर्षों में साबित हो चुका है कि कार्बन 14 का एक निर्धारित मात्रा का नमूना 5730 वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है।

क्या है ज्ञानवापी विवाद?

बता दें कि कुछ महिलाओं ने 5 अगस्त 2021 को वाराणसी कोर्ट में याचिका लगाई थी कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर समेत कई विग्रहों में पूजा करने की अनुमति दी जाए। इस याचिका पर कोर्ट ने सर्वे करने की अनुमति दी थी। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद के तहखाने में शिवलिंग मौजूद है। मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था। वजुखाना से पानी निकाला गया तो उसमें शिवलिंग मिला। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिवलिंग की कॉर्बन डेटिंग और साइंटिफिक सर्वे का आदेश दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया था।

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