CM नायब सैनी पहुंचे आरती राव के घर डिनर पर: हरियाणा BJP में 'डिनर डिप्लोमेसी' से डैमेज कंट्रोल, अनिल विज रहे गायब
हरियाणा की राजनीति में लंबे समय से चल रही अंदरूनी खींचतान और नेताओं के बीच दरार को भरने के लिए ‘डिनर डिप्लोमेसी’ एक बार फिर सुर्खियों में है। 13 जुलाई की रात चंडीगढ़ में स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव के आवास पर एक विशेष रात्रिभोज का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री नायब सैनी अपनी पत्नी सुमन सैनी के साथ पहुंचे। साथ ही कैबिनेट मंत्री अरविंद शर्मा और उनकी पत्नी रीटा शर्मा भी इस खास मौके का हिस्सा बने।
CM को मनाने में लगा हफ्ता
सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री सैनी को इस डिनर के लिए मनाने में पूरी एक हफ्ते की मशक्कत लगी। अंततः दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद यह मुलाकात तय हो सकी।
डिनर की टाइमिंग और सियासी संकेत
दिलचस्प बात यह रही कि डिनर उसी दिन आयोजित किया गया, जिस दिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने सीएम सैनी पर तंज कसते हुए कहा था कि "राजा साहब के सामने सीएम की जुबान नहीं हिलती।" माना जा रहा है कि डिनर का उद्देश्य राजनीतिक संदेश देना और सैनी-राव के बीच मनमुटाव कम करना था।
सोशल मीडिया पर प्रचार, मगर चयनित पेजों से
इस डिनर की फोटो भाजपा हरियाणा और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के पेजों पर शेयर की गई, जबकि सीएमओ हरियाणा और मंत्री अरविंद शर्मा के पेज पर कोई जानकारी नहीं दी गई।
विज नदारद, सवाल बरकरार
जहां एक ओर सीएम और कई मंत्रियों की मौजूदगी से डिनर का राजनीतिक महत्व बढ़ गया, वहीं वरिष्ठ मंत्री अनिल विज की गैरमौजूदगी सवाल खड़े कर रही है। उन्हें न्योता नहीं दिया गया या वे खुद नहीं आए—इस पर अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं है।
डिनर के दिन ही रिलीज हुआ इंटरव्यू: राव इंद्रजीत की 5 बड़ी बातें
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CM ऑफिस पर तंज: राव ने कहा कि CM बदल गए, मगर अफसर वही हैं जो मनोहर लाल के समय थे।
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मनोहरलाल ने काम कराए, मगर जननेता नहीं बन पाए।
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“मेरा सीधा पार्टी जॉइन करना कुछ नेताओं को नहीं भाया”, पीएम मोदी की वजह से भाजपा में आए थे।
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“मैं सबसे बड़ा जनाधार वाला नेता हूं”, इसलिए कुछ लोग मुझे पार्टी में उभरने नहीं देना चाहते।
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“जब मुझे छेड़ा जाता है, तभी टकराव होता है”, इसी वजह से कई मुख्यमंत्रियों से रिश्ते नहीं बन पाए।
डिनर डिप्लोमेसी का इतिहास
राव इंद्रजीत इससे पहले कांग्रेस में रहते हुए भी डिनर के ज़रिए राजनीतिक दबाव बनाने की कला में माहिर रहे हैं। 2015 में जब मनोहर लाल मुख्यमंत्री बने थे, तब भी उन्होंने सांसदों और विधायकों को बुलाकर यही रणनीति अपनाई थी।